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कायोत्सर्ग आवश्यक का मनोवैज्ञानिक अनुसंधान ...271 यदि निश्चित श्वासोश्वास पूर्ण होने के बाद 'नमोअरिहंताणं' पद बोले बिना कायोत्सर्ग पूरा कर लिया जाए तो कायोत्सर्ग भंग होता है। इसी तरह कायोत्सर्ग पूर्ण हुए बिना 'नमो अरिहंताणं' बोलने पर भी कायोत्सर्ग भग्न होता है। किन स्थितियों में कितने कायोत्सर्ग करें?
पूर्वाचार्यों ने अलग-अलग दोषों की शुद्धि के लिए पृथक-पृथक कायोत्सर्ग का विधान किया है।
• नियुक्तिकार भद्रबाहुस्वामी के अनुसार दिवस सम्बन्धी पापों की शुद्धि के लिए सौ श्वासोच्छ्वास या चार लोगस्ससूत्र का कायोत्सर्ग करना चाहिए।
• रात्रि विषयक पाप कर्मों की विशुद्धि के लिए पचास श्वासोच्छ्वास या दो लोगस्ससूत्र का कायोत्सर्ग करना चाहिए।
• पक्ष भर में किसी तरह का दोष लग जाए तो उससे निवृत्त होने के लिए तीन सौ श्वासोच्छ्वास या बारह लोगस्ससूत्र का कायोत्सर्ग करना चाहिए।
• चार मास के भीतर किसी तरह का अतिचार लग जाए तो उससे परिशुद्ध होने के लिए पाँच सौ श्वासोच्छ्वास या बीस लोगस्ससूत्र का कायोत्सर्ग करना चाहिए।
• वर्षभर में लगे हुए दोषों का निरसन करने के लिए एक हजार आठ श्वासोच्छ्वास या चालीस लोगस्ससूत्र का कायोत्सर्ग करना चाहिए।42
• गमन, आगमन, विहार, शयन, स्वप्नदर्शन एवं नौका आदि से नदी पार करने पर ईर्यापथिक प्रतिक्रमण में पच्चीस श्वासोच्छ्वास अथवा एक लोगस्ससूत्र का कायोत्सर्ग करना चाहिए।
• आगमसूत्र के उद्देश और समुद्देश प्रारम्भ करते समय सत्तावीस श्वासोच्छ्वास तथा सूत्र की अनुज्ञा, स्वाध्याय प्रस्थापना एवं काल प्रतिक्रमण के संमय आठ श्वासोच्छ्वास या एक नमस्कार मन्त्र का कायोत्सर्ग करना चाहिए।
• अकाल में स्वाध्याय करने पर, अविनीत को वाचना देने पर तथा दुष्ट को पढ़ाने और अर्थ की वाचना देने पर आठ श्वासोच्छ्वास या एक नमस्कारमन्त्र का कायोत्सर्ग करना चाहिए।43
• स्वप्न में, प्राणिवध, मृषावाद, अदत्तादान, मैथुन और परिग्रह का सेवन करने पर सौ श्वासोच्छ्वास अथवा चार लोगस्ससूत्र का कायोत्सर्ग करना चाहिए।44