Book Title: Shadavashyak Ki Upadeyta
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith
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वन्दन आवश्यक का रहस्यात्मक अन्वेषण ...241
दिट्ठमदिट्ठ सिंगं, कर तम्मोअण अणिद्धणालिद्धं । ऊणं उत्तरचूलिअ, मूअं ढड्डर चुडलियं च ॥
गुरुवंदनभाष्य, गा. 23-25 88. (क) अनगार धर्मामृत, 8/98-111
(ख) मूलाचार, 7/605-609 89. विणएण विप्पहूणस्स, हवदि सिक्खा णिरत्थिया सव्वा । विणओ सिक्खाए फलं, विणयफलं सव्वकल्लाणं॥
भगवती आराधना, गा. 130 90. ज्ञानलाभाचारविशुद्धिसम्यगाराधनाद्यर्थं विनय-भावनम्.....विनय भावनं क्रियते ।
तत्त्वार्थ राजवार्तिक, 9/23 पृ. 622-623 91. भगवती आराधना, गा. 302 की टीका पृ. 276 92. विणएण ससंकुज्जलजसोह, धवलिय दियंतओ पुरिसो। सव्वत्थ हवइ सुहओ, तहेव आदिज्जवयणो य॥
जे केइ वि उवएसा, इह परलोए सुहावहा संति ।
विणएण गुरुजणाणं, सव्वे पाउणइ ते पुरिसा । देविंद चक्कहरमंडलीय, रायाइजं सुहं लोए। तं सव्वं विणयफलं, णिव्वाण सुहं तहा चेव ॥
सत्तू व मित्तभावं, जम्हा उवयाइ विणयसीलस्स। विणओ तिविहेण तओ, कायव्वो देसविरएण ।
. वसुनन्दि श्रावकाचार, गा. 332-336 93. विणओ मोक्खद्दारं, विणयादो संजमो तवो णाणं। णिगएणाराहिज्जइ, आयरियो सव्व संघो य॥
आयारजीदकप्प गुणदीवणा, अत्तसोधिणिज्झंझा। अज्झव मद्दव लाघव, भत्ती पल्हाद करणं च ।।
भगवती आराधना, 131-132 94. (क) पद्मनन्दिपंचविंशतिका, 6/19
(ख) रयणसार, गा. 78 95. विणओ सासणे मूलं, विणीओ संजओ भवे । विणयाउ विप्पमुक्कस्स, कओ धम्मो कओ तवो?
आवश्यकनियुक्ति, 1216
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