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कायोत्सर्ग आवश्यक का मनोवैज्ञानिक अनुसंधान ...261 1. घोटक 2. लता 3. स्तम्भ 4. कुड्य 5. माला 6. शबरवधू 7. निगड़ 8. लम्बोत्तर 9. स्तनदृष्टि 10. वायस 11. खलीन 12. युग-जुआँ से पीड़ित हुए बैल के समान गर्दन प्रसरित कर कायोत्सर्ग करना 13. कपित्थ 14. शिरः प्रकंपित 15. मूकत्व 16. अंगुलि 17. भ्रूविकार 18. वारूणीपायी 19. से 28. दिशा अवलोकन-पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, आग्नेय, नैऋत्य, वायव्य, ईशान, ऊर्ध्व और अध:- इन दस दिशाओं का अवलोकन करते हुए कायोत्सर्ग करना 29. ग्रीवोन्नमन- गरदन को अधिक ऊँची करते हुए कायोत्सर्ग करना 30. प्रणमन- गरदन को अधिक झुकाते हुए कायोत्सर्ग करना 31. निष्ठीवनखंखारते या यूंकते हुए कायोत्सर्ग करना 32. अंगामर्श- शरीर का स्पर्श करते हुए कायोत्सर्ग करना।32 __ तुलना- यदि तुलनात्मक अध्ययन किया जाए तो दिगम्बर मान्य 12वां एवं 19 से लेकर 32 तक कुल 15 दोष श्वेताम्बर अवधारणा से भिन्न हैं।
• स्तम्भ और कुड्य तथा अंगूलिका और भ्रू विकार- ये चार दोष दिगम्बर मत में पृथक्-पृथक् माने गये हैं, जबकि श्वेताम्बर मत में 'स्तंभकुड्य' नाम का और 'अंगूलिका-भ्रू' नाम का एक-एक दोष माना गया है।
• दिगम्बर मत में 'शबरवधू' नाम का एक ही दोष है, परन्तु श्वेताम्बर अभिमत में शबरी और वधू- ये दो पृथक्-पृथक् दोष के रूप में मान्य हैं।
• 10वां ऊलिका, 11वां संयती, 19वाँ प्रेक्षा- ये तीन दोष दिगम्बर परम्परा में नहीं माने गये हैं। शेष दोषों में किंचिद् क्रम परिवर्तन के साथ लगभग समानता है।
• लम्बोत्तर, स्तन, संयती आदि कुछ दोष मुनि की अपेक्षा से कहे गये हैं, किन्तु यथोचित रूप से श्रमण एवं गृहस्थ सभी को उनका वर्जन करना चाहिए।
• यहाँ कायोत्सर्ग के 19 या 32 दोष ऊर्ध्वस्थित कायोत्सर्ग की अपेक्षा गिनाये गये हैं, क्योंकि खड़े होकर कायोत्सर्ग करना, यह उत्कृष्ट प्रकार है। अत: आराधक वर्ग को यथाशक्य खड़े होकर कायोत्सर्ग करना चाहिए।
__ अन्य कुछ दोष- 1. समय बीतने के पश्चात कायोत्सर्ग करना 2.लुब्ध चित्त से कायोत्सर्ग करना 3. सावद्य-चित्त से कायोत्सर्ग करना 4. विमूढ़ चित्त से कायोत्सर्ग करना 5. पट्टकादि के ऊपर पैर रखकर कायोत्सर्ग करना, 6. शरीर का अनावश्यक स्पर्श करते हुए कायोत्सर्ग करना 7. अविधि पूर्वक