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252...षडावश्यक की उपादेयता भौतिक एवं आध्यात्मिक सन्दर्भ में लिए कायोत्सर्ग चिकित्सा (उपचार) के समान है। यह मन में उत्पन्न हुए विकार रूपी घावों को दूर करने के लिए एक प्रकार का मरहम है। यह वह औषधि है जो दोष रूपी घावों को दूरकर एवं विमल स्वभावी आत्मा को स्वस्थ कर उसे परिपुष्ट करती है। अत: इसका व्रण चिकित्सा नाम सार्थक है। कायोत्सर्ग का शब्दार्थ है- काया का उत्सर्ग करना, शरीर का त्याग करना आदि। ___ शास्त्रकारों के अनुसार काय + उत्सर्ग- इन दो पदों का स्पष्टीकरण निम्न . प्रकार है- यहाँ 'काय' शब्द से मात्र औदारिक या स्थूल शरीर नहीं है, परन्तु उसके द्वारा होने वाला अमुक प्रकार का व्यापार या उसके प्रति रहा हुआ ममत्व है। 'उत्सर्ग' शब्द का अर्थ केवल परित्याग नहीं है, परन्तु 'चेष्टां प्रति परित्यागः'- चेष्टा सम्बन्धी शरीर का त्याग करना कायोत्सर्ग है।
यहाँ शरीरत्याग का अर्थ- शारीरिक चंचलता और देहासक्ति का त्याग है। आचार्य अपराजितसूरि ने विजयोदया टीका में शरीर त्याग के आशय को स्पष्ट करते हुए प्रश्न उठाया है कि आयु के पूर्ण होने पर ही आत्मा शरीर को छोड़ती है, अन्य समय में नहीं, तब अन्य समय में कायोत्सर्ग का कथन कैसे घटित हो सकता है? इसका समाधान देते हुए कहा गया है कि शरीर का वियोग न होने पर भी इसके अशुचित्व, अनित्यत्व, असारत्व, क्षणिकत्व, दुःखहेतुत्व, संसार परिभ्रमण हेतुत्व आदि दोषों का विचार कर 'यह शरीर मेरा नहीं है और मैं इसका स्वामी नहीं हूँ' ऐसा संकल्प उत्पन्न होने से शरीर के प्रति रहे हुए राग भाव का अभाव हो जाता है उससे शरीर का त्याग सिद्ध होता है। जैसे- प्रियतमा पत्नी से किसी तरह का अपराध हो जाने पर पतिसंग एक घर में रहते हुए भी पति का प्रेम हट जाने के कारण वह परित्यक्त कही जाती हैं, उसी तरह देह के प्रति निर्ममत्व भाव उत्पन्न हो जाने पर, आत्मा और शरीर का भेद ज्ञान हो जाने पर देही व्यक्ति निश्चयत: विदेही कहलाता है। दूसरा कारण यह है कि मुनिजन शारीरिक सुख-सुविधाओं को जुटाने एवं उसके अपाय मूलक कारणों को हटाने में निरुत्सक रहते हैं इसलिए उनकी कायोत्सर्ग साधना योग्य ही है। कायोत्सर्ग की शास्त्रोक्त परिभाषाएँ
कायोत्सर्ग का एक नाम व्युत्सर्ग है। आगमवेत्ताओं ने कायोत्सर्ग को व्युत्सर्ग का सम्बोधन भी दिया है। शाब्दिक अर्थ की दृष्टि से किंचिद् अन्तर होने पर भी प्रयोजनात्मक स्वरूप की अपेक्षा दोनों एकरूप हैं। उत्तराध्ययनसूत्र के