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180...षडावश्यक की उपादेयता भौतिक एवं आध्यात्मिक सन्दर्भ में 2. स्थापना वन्दना- एक तीर्थंकर के प्रतिबिम्ब का अथवा आचार्य आदि
के प्रतिबिम्बों का स्तवन करना, स्थापना वन्दना है। 3. द्रव्य वन्दना- एक तीर्थंकर के शरीर का अथवा आचार्य आदि के शरीर
का स्तवन करना, द्रव्य वन्दना है। 4. क्षेत्र वन्दना- तीर्थंकर और आचार्यादि से अधिष्ठित क्षेत्र की स्तुति
करना अर्थात जहाँ तीर्थंकर आदि विचरण कर रहे हैं उस क्षेत्र का गुणगान
करना, क्षेत्र वन्दना है। 5. काल वन्दना- जिस काल में तीर्थंकर आदि हुए, उस युग की स्तुति
करना, काल वंदना है। 6. भाव वंदना- एक तीर्थंकर और आचार्य आदि के गुणों का शुद्ध ___परिणाम से स्तवन करना, भाव वन्दना है।27
गुणभृत पुरुषों के प्रति नम्र वृत्ति धारण करना तथा कषायों और इन्द्रियों को नम्र करना विनय है। वन्दना, विनय का साकार रूप है। वन्दना के पाँच नामान्तरों में एक विनयकर्म भी माना गया है। इस तरह विनयरूप वन्दन के अनेक भेद-प्रभेद हैं। मूलाचार में सामान्यतः पाँच प्रकार का विनय बतलाया गया
1. लोकानुवृत्ति विनय- पूज्यजनों के आने पर आसन से उठकर खड़े
होना, अंजलि जोड़ना, अपने आवास में आये हुए को आसन देना, अतिथि पूजा (अतिथिसंविभाग) करना, अपने वैभव के अनुसार देव पूजा करना, अनुकूल वचन बोलना, अनुकूल प्रवृत्ति करना, देशकाल के
योग्य दान देना और लोक के अनुकूल रहना, लोकानवृत्ति विनय है। 2. अर्थनिमित्त विनय- अर्थ के प्रयोजन से या कार्य सिद्धि के लिए उपयुक्त ___क्रियाएँ करना, अर्थनिमित्त विनय है। 3. कामतन्त्र विनय- काम पुरुषार्थ के निमित्त पूर्व प्रकार का विनय करना,
कामतन्त्र विनय है। 4. भय विनय- भय से रक्षा करने के लिए पूर्ववत विनय करना, भय
विनय है। 5. मोक्ष विनय- मोक्षप्राप्ति के लिए ज्ञानादि का विनय करना, मोक्ष
विनय है।28