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192...षडावश्यक की उपादेयता भौतिक एवं आध्यात्मिक सन्दर्भ में
(7 से 9) पैरों के आगे की भूमि का भाग- तत्पश्चात भूमि के ऊपर 1. दायें पाँव के सम्मुख 2. फिर दायें एवं बायें पाँव के बीच की भूमि के सम्मुख 3. फिर बायें पाँव के सम्मुख- इन तीन स्थानों की प्रमार्जना करें।
10. बायें हाथ का भाग- तदनन्तर नीचे बैठकर एवं दायें हाथ में मुखवस्त्रिका ग्रहण करके ललाट के दायीं ओर से सलंग प्रमार्जन करते हुए पूरा ललाट, पूरा बायाँ हाथ एवं बायें हाथ के पीछे के भाग में कोहनी तक प्रमार्जना करें। ____11. दायें हाथ का भाग- फिर बायें हाथ में मुखवस्त्रिका ग्रहण कर बायीं तरफ से प्रमार्जन करते हुए पूरा ललाट, पूरा दाहिना हाथ एवं दाहिने हाथ के पीछे के भाग में कोहनी तक प्रमार्जना करें।
(12 से 14) रजोहरण या चरवला का भाग- तत्पश्चात रजोहरण या चरवला के ऊपर मुखवस्त्रिका से तीन बार आडी प्रमार्जना करें।
(15 से 17) पैरों के पीछे की भूमि का भाग- फिर खड़े होने के समय पाँव के पीछे की भूमि का रजोहरण से तीन बार प्रमार्जन करें।
इस प्रकार 3 प्रमार्जना पाँव के पीछे के भाग में, 3 प्रमार्जना पाँव के आगे के भाग में, 3 प्रमार्जना पाँव के आगे की भूमि में रजोहरण या चरवला से की जाती है।
2 प्रमार्जना ललाट से लेकर दोनों हाथ की कोहनी तक मुखवस्त्रिका से की जाती है।
3 प्रमार्जना रजोहरण के दसियाँ की और 3 प्रमार्जना पाँव के पीछे की भूमि पर रजोहरण या चरवला से की जाती है।
इस तरह कुल सत्रह संधिस्थानों (संडाशक) की प्रमार्जना होती है। वन्दन आवश्यक में प्रयुक्त सूत्रों का परिचय
वन्दन आवश्यक से तात्पर्य द्वादशावर्त्तवन्दन (कृतिकर्म) से है, शेष दोनों वन्दन से नहीं। किन्तु वन्दन अधिकार के सन्दर्भ में त्रिविध वन्दन-विधि दर्शायी गई है क्योंकि दैनिक धार्मिक कृत्यों में उनका उपयोग होता है अत: इनमें प्रयुक्त सभी सूत्रों का परिचय दिया जा रहा है
खमासमणसूत्र- थोभ (स्तोभ/छोभ) वंदन में उपयोगी सूत्र। स्तोभ का अर्थ है- अटकना। इस शब्दार्थ के अनुसार खड़े रहकर जो वंदन किया जाता