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214...षडावश्यक की उपादेयता भौतिक एवं आध्यात्मिक सन्दर्भ में
2. पक्षगमन- पक्ष-पार्श्व, शिष्य के द्वारा गुरु से सटकर या अति निकट होकर चलना।
3. पृष्ठगमन- पृष्ठ-पीछे, बिना कारण गुरु के पीछे सटकर चलना। 4. पुरःस्थ- शिष्य के द्वारा बिना कारण गुरु के आगे खड़े रहना। 5. पक्षस्थ- बिना कारण गुरु की समश्रेणि में अति निकट खड़े होना।
6. पृष्ठ आसन्न-बिना कारण गुरु के पीछे, किन्तु अत्यन्त समीप में खड़े होना।
7. पुरो निषीदन- निषीदन-बैठना, शिष्य के द्वारा गुरू के आगे बैठना। 8. पक्ष निषीदन- बिना कारण गुरु की समश्रेणि में अतिनिकट बैठना। 9. पृष्ठ आसन्न- बिना कारण गुरु के पीछे अत्यन्त समीप में बैठना।
10. आचमन- गुरु के साथ मलोत्सर्ग भूमि के लिए साथ गये हुए शिष्य के द्वारा, वहाँ से लौटकर गुरु से पहले हाथ-पाँव की शुद्धि कर लेना। आहारादि के समय भी गुरु से पहले मुख आदि की शुद्धि कर लेना आशातना है।
11. आलोचन- गुरु के साथ बहिर्भूमि या विहार आदि के लिए साथ गये हुए शिष्य के द्वारा वहाँ से वसति में लौटकर गुरु से पहले गमनागमन विषयक आलोचना कर लेना। ____12. अप्रतिश्रवण- गुरु रात्रि में या विकाल में यह पूछे कि कौन सो रहा है? कौन जग रहा है? यह सुनकर भी शिष्य के द्वारा अनसुनी करके कोई उत्तर न देना। ___ 13. पूर्वालापन- कोई व्यक्ति गुरु के पास वार्तालाप आदि के उद्देश्य से आया हुआ हो, शिष्य के द्वारा गुरु से पूर्व उससे बातचीत कर लेना।
14. पूर्वालोचन- आहारादि लाने के पश्चात उसमें लगे हुए दोषों की पहले अन्य साधु के समक्ष आलोचना करके, फिर गुरु के समक्ष आलोचना करना।
15. पूर्वोपदर्शन- शिष्य के द्वारा आहारादि लाने के पश्चात पहले किसी अन्य साधु को दिखाकर फिर गुरु को दिखाना।
16. पूर्व निमन्त्रण- शिष्य के द्वारा आहारादि ले आने के पश्चात उसके सेवन हेतु गुरु को निमन्त्रण देने से पूर्व अन्य मुनियों को निमंत्रित करना।
17. खद्ध दान- खद्ध अर्थात खाद्य आहार अथवा प्रचुर मात्रा में आहार। शिष्य के द्वारा निर्दोष आहार आदि ले आने के पश्चात गुरु की अनुमति लिये