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228...षडावश्यक की उपादेयता भौतिक एवं आध्यात्मिक सन्दर्भ में स्थानों की आराधना निम्न प्रकार हो जाती है- 1. अरिहंत की भक्ति 2. सिद्ध की भक्ति 3. प्रवचन- ज्ञान धारक संघ की भक्ति 4. गुरु की भक्ति 5. स्थविरों की भक्ति 6. बहुश्रुत मुनियों की भक्ति 7. तपस्वी मुनियों की भक्ति और 8. परमेष्ठी स्वरूप पूज्य पुरुषों का विनय। शेष बारह स्थानों की भी भाव वंदना से देश आराधना हो जाती है।102 *, 3. स्वर्ग प्राप्ति का प्रमुख हेतु- शास्त्रकार कहते हैं कि जिसके स्मरण मात्र से पापी आत्मा भी निःसन्देह देवगति को प्राप्त करता है, उस परमेष्ठी महामंत्र का अन्तर्मन से स्मरण करो।103 इससे सुस्पष्ट है कि जब पापी जीव भी परमेष्ठि के स्मरण मात्र से देवगति प्राप्त कर सकता है, तब जो भक्तिपूर्वक परमेष्ठी की स्तुति-वंदना करता है उसे निश्चित रूप से स्वर्ग या मोक्ष की प्राप्ति होती है।
4. पुण्यानुबंधी पुण्य अर्जन का हेतु- परमेष्ठी पद की भाव वंदना करते समय साध्य और साधन दोनों श्रेष्ठ एवं सर्वोत्तम होने से साधक उत्कृष्ट श्रद्धा एवं भक्ति जागृत कर सकता है। यह क्रिया उस वंदनकर्ता के लिए विपुल निर्जरा के साथ-साथ पुण्यानुबंधी पुण्य अर्जन का हेतु भी होता है। साथ ही परम्परा से मोक्ष उपलब्धि में कारणभूत बनती है। ___5. आत्मिक शक्तियों को प्रकट करने का उत्तम हेतु- प्रत्येक देहधारी मनुष्य में अनंत शक्तियाँ विद्यमान हैं। वह जब तक मिथ्यात्वादि अंधकार में उलझा रहता है, वे शक्तियाँ भी सुप्त रहती हैं किन्तु गुणोत्कीर्तन, समर्पण, संस्तवन आदि से युक्त होकर भाव वंदना करने से, वे आत्म शक्तियाँ अनेक रूपों में प्रकट हो जाती हैं। ___6. ग्रहशान्ति एवं अनिष्ट निवारण में सहयोगी- परमेष्ठी पद के स्मरण, वंदन एवं स्तवन का महत्त्व दर्शाते हुए शास्त्रकारों ने कहा है- जिस साधक के मन में नमस्कार महामंत्र का ध्यान है, जो जिन शासन का सार और चौदह पूर्व का पिंड रूप है उसका संसार क्या कर सकता है? अर्थात संसार की कोई भी दुष्ट शक्ति उसे पीड़ा नहीं पहुँचा सकती है।104 ज्योतिषशास्त्र के अनुसार परमेष्ठी पद का नियमित एवं विधिपूर्वक जाप आदि करने से ग्रहशान्ति भी तत्काल होती है।
7. लौकिक सिद्धियों की प्राप्ति- परमेष्ठी पद का स्मरण-वंदन करने से