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वन्दन आवश्यक का रहस्यात्मक अन्वेषण ... 235
(ख) धवलाटीका, 8/3,41/808 दंसणणाण चरित्ते, तवविणओ ओवचारिओ चेव । मोक्खह्नि एस विणओ, पंचविहो होदि णायव्वो । (ग) मूलाचार, 586
30. आवश्यकसूत्र, अध्ययन तृतीय
31. कुछ परम्पराओं में चरवला पर मुखवस्त्रिका के दोनों पट्ट को खोलकर उसकी गुरुचरण के रूप में स्थापना करते हैं, कुछ परम्पराओं में पट्ट सहित मुखवस्त्रिका पर और साधु-साध्वीजी प्राय: रजोहरण की डंडी पर दो भाग की कल्पना करते हुए चरण युगल की स्थापना करते हैं।
32. दोणदं तु जधाजादं, बारसावत्तमेव य । चदुस्सिरं तिसुद्धं च किदियम्मं पउंजदे ॥
मूलाचार, 7/603
33. वही, 603 की टीका
34. चत्तारि पडिक्कमे, किइकम्मा तिन्नि हुंति सज्झाए । पुव्वन्हे अवरन्हे किइकम्मा चउदस हवंति ॥
(क) आवश्यकनिर्युक्ति, 1201 (ख) मूलाचार, 7/602
35. स्वाध्याये द्वादशेष्टा, षड्वन्दनेऽष्टौ प्रतिक्रमे । कायोत्सर्गा योग भक्तौ द्वौ चाहोरात्रगोचराः ॥
अनगारधर्मामृत 8/75
36. मूलाचार, पृ. 443-444
37. तपागच्छीय परम्परा में 'सूत्र - अर्थ - तत्त्व खरी सद्दहुँ' ऐसा पाठ बोलते हैं। 38. ये पूर्व क्रिया रूप होने से पुरिम कहलाते हैं तथा मुखवस्त्रिका के दोनों भाग की ओर तीन तीन बार होने से छह पुरिम होते हैं।
39. जिस प्रकार कुलवधू के द्वारा निकाला गया घूंघट झूलता रहता है उसी तरह अंगुलियों के अन्तराल में मुखवस्त्रिका का झुलता हुआ आकार बनाना वधूटक कहलाता है।
40. अक्खोड़ा (आस्फोटन) का अर्थ है- खींचना, आकर्षित करना ।
41. पक्खोड़ा (प्रस्फोटन) का अर्थ है- खंखेरना, झाड़ना, गिराना। अक्खोड़ा और पक्खोड़ा 9-9 होते हैं, ये क्रमशः एक दूसरे के अन्तराल में होते हैं। यथा पहले