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वन्दन आवश्यक का रहस्यात्मक अन्वेषण ...201
का साक्षात्कार करना हो, तो गुरु रूपी दीपक आवश्यक है। प्राज्ञ पुरुषों का अनुभव कहता है कि जहाँ गुरु नहीं वहाँ ज्ञान नहीं, जहाँ ज्ञान नहीं वहाँ विरति नहीं, जहाँ विरति नहीं वहाँ चारित्र नहीं और जहाँ चारित्र नहीं वहाँ मोक्ष नहीं। अतएव आत्म विकास के इच्छुक साधकों को गुरु की शरण स्वीकार करनी चाहिए और उनके मार्गदर्शन में साधना क्रम का अनुसरण करना चाहिए।
गुरु की प्रसन्नता विनय या वंदन से प्राप्त होती हैं। कहा भी गया है कि सर्वज्ञ प्रणीत आचार का मूल विनय है, विनय गुणवंत की सेवा-भक्ति रूप है और सेवा-भक्ति विधिपूर्वक वंदन द्वारा ही संभव है।
प्रश्न होता है वंदन किसे करना चाहिए, वंदन योग्य कौन है? इस सम्बन्ध में आचार्य भद्रबाह कहते हैं कि बुद्धिमान, संयत, भावसमाधि धारण किया हुआ पाँच समिति एवं तीन गप्ति का पालन करने वाला और असंयम के प्रति जुगुप्सा करने वाला श्रमण वंदन योग्य होता है।56
मूलाचार के अनुसार आचार्य, उपाध्याय, प्रवर्तक, स्थविर और गणधरये पाँचों कृतिकर्म करने योग्य हैं तथा इन्हें वंदन करने से निर्जरा होती है।57 गोम्मटसार के मतानुसार अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, साधु, शास्त्र, चैत्य, जिनप्रतिमा और जिनधर्म- ये नवदेवता वन्दन के योग्य हैं।58
प्रवचनसारोद्धार में आचार्य आदि पाँच को कृतिकर्म के योग्य बतलाया है और कहा गया है कि आचार्य, उपाध्याय, प्रवर्तक, स्थविर और रत्नाधिक- इन पाँच को वन्दन करने से विपुल कर्मों की निर्जरा होती है।59
स्पष्ट है कि जो चारित्र एवं गुणों से सम्पन्न हों तथा द्रव्य एवं भाव दोनों से एकरूप हों वे सन्त वंदनीय हैं। साधारण जन मानस के लिए ऐसे आदर्श की आवश्यकता है जिसका जीवन व्यवहार और निश्चय दोनों पक्षों से परिपूर्ण हों। आचार्य भद्रबाहु ने इस कथन का समर्थन करते हुए कहा है कि जिस प्रकार वही सिक्का ग्राह्य होता है जिसकी धातु भी शुद्ध हो और मुद्रांकन भी ठीक हो, उसी प्रकार द्रव्य और भाव दोनों दृष्टियों से शुद्ध व्यक्ति ही वन्दन करवाने का अधिकारी होता है। वन्दनीय को वन्दन कब करना चाहिए?