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वन्दन आवश्यक का रहस्यात्मक अन्वेषण ...179 1. फेटावंदन- फिट्टा अर्थात मार्ग। रास्ते चलते हुए मुनि को बद्धांजलि पूर्वक मस्तक झुकाकर वंदन करना फेटावंदन है। ___2. थोभवंदन- स्तोभ अर्थात खड़े होकर वंदन करना अथवा दोनों हाथ, दोनों घुटने एवं मस्तक- इन पाँच अंगों को झुकाकर वंदन करना थोभवंदन है। श्वेताम्बर मूर्तिपूजक की वर्तमान परम्परा में 'सुगुरु सुखशाता पृच्छा सूत्र' और 'अब्भुट्ठिओमि सूत्र' तथा स्थानकवासी-तेरापंथी परम्परा में 'तिक्खुत्तो' पाठ के उच्चारण पूर्वक यह वन्दन किया जाता है।
3. द्वादशावर्त्तवंदन- बारह आवर्त आदि विशिष्ट क्रियापूर्वक वंदन करना द्वादशावर्त वंदन है।
___ उक्त तीन प्रकारों को जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट वंदन भी कहा गया है। जघन्य वंदन के समय मस्तक झुकाते हुए हाथ जोड़कर ‘मत्थएण वंदामि' बोला जाता है। मध्यम वंदन करते समय खमासमणसूत्र, सुहराईसूत्र, अब्भुट्ठिओमि सूत्र आदि कहे जाते हैं तथा उत्कृष्ट वंदन करने हेतु सुगुरुवांदणा सूत्र बोलते हुए थोभ वंदन किया जाता है।
गीतार्थ परम्परानुसार प्रारम्भिक दो वंदन के अधिकारी सभी साधु-साध्वी हैं जबकि तीसरा द्वादशावर्त्तवंदन आचार्य आदि पदस्थ मुनियों को ही करना चाहिए। इस वंदनसूत्र की विशद व्याख्या यथास्थान करेंगे।
चैत्यवंदन भाष्य में प्रकारान्तर से तीन प्रणाम कहे गये हैं जो पूर्वकथित त्रिविध वंदन से प्रायः साम्य रखते हैं1. अंजलि प्रणाम- करबद्ध दोनों हाथों को मस्तक पर रखते हुए वंदन
करना, अंजलि प्रणाम है। 2. अर्धावनत प्रणाम- खड़े हुए किंचित मस्तक झुकाते हुए वन्दन करना, .. अर्धावनत प्रणाम है। 3. पंचांग प्रणाम- दोनों हाथ, दोनों घुटने एवं मस्तक- इन पाँच अंगों के
भूमिस्पर्श पूर्वक वंदन करना, पंचांग प्रणाम है।26 ___ दिगम्बर के मूलाचार में वन्दना के छह प्रकार निक्षेप दृष्टि से बतलाये गये हैं1. नाम वन्दना- एक तीर्थंकर का नाम उच्चरित करना अथवा आचार्यादि
के नाम का उच्चारण करना, नाम वन्दना है।