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वन्दन आवश्यक का रहस्यात्मक अन्वेषण... 181
मोक्ष विनय तीन, चार और पाँच प्रकार का कहा गया है
(i) दर्शन विनय - सम्यग्दर्शन के अंगों का पालन, भक्ति, पूजा आदि गुणों का धारण और शंकादि दोषों का त्याग करना अथवा तीर्थंकर उपदिष्ट तत्त्व स्वरूप का यथार्थ श्रद्धान करना, दर्शन विनय है।
(ii) ज्ञान विनय - काल, विनय, उपधान, बहुमान, अनिह्नव, व्यंजन, अर्थ, तदुभय- इन आठ प्रकार के ज्ञानाचार का पालन करना अथवा मोक्ष प्राप्ति के लिए ज्ञान का ग्रहण करना, अभ्यास करना और स्मरण करना ज्ञान विनय है।
(iii) चारित्र विनय - इन्द्रिय और कषायों के परिणाम का त्याग करना तथा गुप्ति-समिति आदि चारित्र के अंगों का पालन करना, चारित्र विनय है। (iv) तप विनय - संयमधर्म के उत्तरगुणों जैसे- परीषह, भावना, तप आदि में उद्यम करना, परीषहों को सहन करना, तपस्वी की भक्ति करना, चारित्रनिष्ठ मुनियों का सम्मान करना, तप विनय है।
(v) उपचार विनय - आचार्य आदि के आने पर खड़े होना, नमस्कार करना, तदनुकूल भक्तिपूर्वक प्रवृत्ति करना आदि उपचार विनय है। यह विनय तीन प्रकार का है- (i) कायिक (ii) वाचिक और (iii) मानसिक। उनमें से प्रत्येक के दो-दो भेद हैं- प्रत्यक्ष और परोक्ष |
आचार्य आदि के उपस्थित रहते हुए तथा उनके परोक्ष में भी काय, वचन और मन से नमस्कार करना, उनके गुणों का कीर्त्तन करना और स्मरण करना उपचार विनय है। यहाँ उपरोक्त पाँच भेदों में पूर्वोक्त तीन और चार भेद भी समाविष्ट हो जाते हैं।
उक्त वर्णन से स्पष्ट है कि विनय आचार के अनेक स्तर एवं कोटियाँ हैं उनमें वन्दन सर्वोत्कृष्ट प्रकार है। 29
गुरुवन्दन विधि
जैन धर्म की श्वेताम्बर परम्परा में वन्दन के तीन प्रकार उल्लेखित हैं। उनकी प्रचलित विधि इस प्रकार है
1. फेटा वंदन - जोड़े हुए दोनों हाथों को मस्तक पर रखते हुए 'मत्थएण वंदामि' कहना अथवा बद्धांजलि सहित मस्तक झुकाना फेटा वंदन है। यह वन्दन प्रायः मार्ग चलते हुए मुनि को किया जाता है।