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सामायिक आवश्यक का मौलिक विश्लेषण ...108 शिरोनति करते हुए श्लोक बोलकर वन्दना करते हैं। • फिर वन्दनामुद्रा में बैठकर प्रतिज्ञा करते हैं। वह प्रतिज्ञापाठ इस प्रकार है
तीर्थंकरकेवलि-सामान्यकेवलि-समुद्घातकेवलि-उपसर्गकेवलि मूककेवलि अन्तःकृतकेवलिभ्यो नमो नमः। तीर्थंकरोपदिष्ट-श्रुताय नमो नमः। सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्रधारकाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्योनमो नमः
जम्बूद्वीपे, भरतक्षेत्रे, आर्यखण्डे, भारतदेशे... प्रान्ते... नगरे १००८ श्री जिन चैत्यालयमध्ये, अद्यवीरनिर्वाण ... मैं सामायिक के कालपर्यन्त के लिए समस्त पापों का त्याग करता हूँ।175
• उसके बाद सामायिकग्रहण के लिए पवित्रभूमि पर आसन बिछाकर पूर्व या उत्तर-दिशा की ओर मुख करके खड़े होते हैं। अंजलिबद्ध हाथ जोड़कर बारह आवर्त्त,176 चार शिरोनति177 दो निषद्या और मन, वचन, काया की शुद्धिपूर्वक कृतिकर्म करते हैं।178 • उसके बाद प्रतिज्ञा करते हैं___'अथपौर्वाणिक, मध्याणिक, अपराणिक काले घटिकाद्वयपर्यन्तं सर्वसावधयोगात् विरतोऽस्मि'।
तदनन्तर स्वाध्याय-ध्यान आदि में प्रवृत्त हो जाते हैं। उसके बाद अमितगति विरचित सामायिक पाठ बोलते हैं। सामायिकसूत्र : एक विश्लेषण __सामायिक निवृत्ति प्रधान साधना है, यद्यपि इसका बाह्य स्वरूप द्रव्यप्रधान है अत: इस क्रिया में प्रवेश करते समय कुछ सूत्रपाठ बोले जाते हैं। सामान्यतया नमस्कारमंत्र, खमासमणसूत्र, गुरुवंदनसूत्र, सामायिकदंडक, ईर्यापथिकसूत्र, आगारसूत्र, चतुर्विंशतिस्तव आदि सूत्रपाठ सभी परम्पराओं में लगभग समान हैं। इन सूत्रों में 'करेमि भंते' यह मूल सूत्र है, इसे प्रतिज्ञासूत्र कहते हैं। आराधक इस पाठ का उच्चारण करने के तुरन्त बाद समभाव में स्थिर हो जाता है अतएव द्वितीय अध्याय में प्रस्तुत सूत्र का विस्तृत वर्णन किया जाएगा। आराधकों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए शेष सूत्रों का परिचय 'प्रतिक्रमण आवश्यक' के अधिकार में कहेंगे। 'करेमि भंते' सूत्र में छः आवश्यक कैसे
सामायिक आदि छहों आवश्यक परस्पराश्रित हैं। यदि सामायिक आवश्यक का विधिपूर्वक एवं भावपूर्वक अनुपालन करते हैं तो उसकी सभी