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चतुर्विंशतिस्तव आवश्यक का तात्त्विक विवेचन ...133
परिमाण वाला और तीन भागों में विभक्त है- 1. ऊर्ध्वलोक 2. मध्यलोक और 3. अधोलोक। ____ हम मध्यलोक में रहते हैं। क्षेत्र परिणाम की दृष्टि से ऊर्ध्वलोक, मध्यलोक की अपेक्षा सात रज्जू से थोड़ा कम है और अधोलोक सात रज्जू से थोड़ा अधिक है। इस प्रकार मध्यलोक नौ सो योजन परिमाण में अवस्थित है। इसका तात्पर्य यह है कि हम सात सोपान अर्थात सात रज्जू परिमाण अधोलोक को पार करके, एक बहुत बड़ी यात्रा सम्पन्न कर मध्यलोक तक पहुँच गये हैं। यह तीर्थंकर परमात्मा के उत्कीर्तन अथवा गुण स्मरण का ही महाप्रसाद है कि हम अर्धयात्रा सम्पन्न कर सके। यह सुफल हमारे महाप्रयास का नहीं, अपितु परमात्मा के महाप्रसाद का है। सिद्धान्तत: जब एक जीव सिद्ध गति को प्राप्त करता है तभी हमारी विकास यात्रा का प्रारम्भ होता है यानी अव्यवहार राशि में रहा हुआ जीव व्यवहार राशि में प्रवेश करता है। प्रत्येक जीव विकास यात्रा से पूर्व अव्यवहार राशि में रहता है जहाँ प्रतिक्षण जन्म-मृत्यु का क्रम चलता रहता है। यहाँ सम्यक बोध का कोई अवसर उपलब्ध नहीं होता है। विकास यात्रा का प्रथम सोपान व्यवहार राशि है अत: इस पर्याय में जन्म होना हमारे जीवन विकास का प्रारम्भ है। इस तरह तीर्थंकर भगवान भव्य जीवों के लिए परम उपकारक होने से नि:सन्देह स्मरणीय है।
शरीर विज्ञान की दृष्टि से देखा जाए तो हमारे शरीर में सात चक्र हैं, वे अध्यात्म साधना के बल पर अनावृत्त होकर आत्मा को सिद्ध पद तक पहुँचाने में परम निमित्त बनते हैं। ____ संगीत शास्त्र का उद्भव सात अक्षरों के संयोग से हुआ है। इसे मानवीय ब्रह्मविद्या कहा गया है। साध्वी दिव्यप्रभाजी के मौलिक चिन्तन के आधार पर इसमें मानवीय चेतना के विकास के स्वर स्पष्टतया मौजूद हैं। यह लय का विज्ञान है। सकल सृष्टि लयबद्ध है। लौकिक दृष्टिकोण से समग्र भारतवर्ष हिमालय पर्वत और मलय पर्वत की लय-लीला में आबद्ध है। हिमालय योग प्रधान और मलय भोग प्रधान पर्वत माना जाता है। दोनों में लयबद्धता आवश्यक है। लय टूटती है तब प्रलय होता है। हमारा हृदय, मस्तिष्क, उदर आदि अंग भी लय से योजित है। यदि हृदय की लय टूटती है तो बाईपास सर्जरी होती है, मस्तिष्क की लय टूटती है तो क्रोध, भय, चिड़चिड़ापन,