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106...षडावश्यक की उपादेयता भौतिक एवं आध्यात्मिक सन्दर्भ में पुस्तक आदि की स्थापना करते हैं।166 • फिर पूर्ववत गुरुवन्दन करते हैं। . उसके बाद गमनागमन की आलोचना का आदेश लेकर 'गमनागमन' का पाठ बोलते हैं। • फिर एक खमासमणपूर्वक 'इच्छा. संदि. भगवन्! सामायिक संदिसा' कहकर सामायिक का आदेश लेते हैं। • पुन: एक खमासमणपूर्वक 'इच्छा. संदि. भगवन्! सामायिक ठावा तीन नवकार गिणुंजी'- ऐसा कहकर उत्कटासन मुद्रा में बैठकर एवं दाएं हाथ को नीचे स्थापित कर तीन नमस्कारमन्त्र का स्मरण करते हैं। . फिर खड़े होकर 'इच्छा. संदि. भगवन्! जीवराशि खमाऊँजी' कहकर गुरु हों, तो उनकी अनुमतिपूर्वक पाठ बोलते हैं।167 • फिर एक खमासमण देकर 'इच्छा. संदि. भगवन्! अढार पापस्थानक आलोऊजी'- ऐसा कहकर अनुमतिपूर्वक अठारह पापस्थानक का पाठ बोलते हैं। • तदनन्तर एक खमासमणपूर्वक उत्कटासन में बैठकर 'इच्छा. संदि.! द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव, धारूँ जी'- ऐसी अनुमति प्राप्तकर यह सूत्रपाठ बोलते हैं।168 • उसके बाद खड़े होकर मन में एक नमस्कारमन्त्र का स्मरण करते हैं। फिर अर्द्धावनत होकर गुरु न हों, तो स्वयं ही एक बार सामायिक दंडक का उच्चारण करते हैं। इनमें 'बइसणं' 'सज्झाय' 'पंगुरणं' के आदेश नहीं लिए जाते हैं और मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना भी नहीं की जाती है। मुखवस्त्रिका के स्थान पर उत्तरासंग का छेड़ा (दुपट्टे की एक तरफ की किनारी) प्रतिलेखित करते हैं। मुखवस्त्रिका द्वारा सम्पन्न की जाने वाली सभी क्रियाएँ वस्त्र छेड़ा से करते हैं। वर्तमान में मुखवस्त्रिका रखने लगे हैं।
• सामायिक पूर्ण करते समय सर्वप्रथम ईर्यापथिक-प्रतिक्रमण करते हैं। फिर पूर्ववत दो खमासमण द्वारा 'सामायिक पारूँ' 'सामायिक पार्यु- ये दो आदेश लेते हैं। . उसके बाद उत्कटासन में बैठकर तीन नमस्कारमन्त्र बोलते हैं। फिर अनुमति लेकर सामायिक पारने का पाठ कहते हैं।169 • तत्पश्चात तीन नमस्कारमन्त्र का स्मरण करते हैं और दो खमासमण देकर गुरु से सुखशाता पूछते हैं।
पायच्छंदगच्छ में सामायिकग्रहण एवं सामायिकपारण विधि तपागच्छीय सामाचारी के अनुसार जाननी चाहिए। केवल सामायिक लेते समय ‘पडिलेहणं संदिसावेमि' 'पडिलेहणं करेमि'-ये दो आदेश लेकर मुखवस्त्रिका का प्रतिलेखन करते हैं, शेष सर्वविधि समान ही है।170