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56...षडावश्यक की उपादेयता भौतिक एवं आध्यात्मिक सन्दर्भ में
यहाँ सामायिक के छ: प्रकारों का जो उल्लेख किया गया है, उसका तात्पर्य यह है कि ‘करेमिभंते' के पाठ पूर्वक एक आसन पर बैठना ही सामायिक नहीं है, अपितु प्रतिकूल पदार्थों का संयोग होने पर, प्रतिकूल स्थान मिलने पर, प्रतिकूल प्रसंगों के उपस्थित होने पर द्वेष नहीं करना और अनुकूल संयोग आदि के होने पर राग नहीं करना सामायिक है। इस प्रकार की सामायिक साधना चाहे जब की जा सकती है। वर्तमान युग में द्रव्य सामायिक का प्रचलन विशेष है। आत्म जिज्ञासु साधकों को भाव-सामायिक के प्रति भी जागरूक रहना चाहिए।
. यदि ऐतिहासिक दृष्टि से देखा जाए तो पूर्वोक्त प्रकारों की विस्तृत चर्चा श्वेताम्बर के आवश्यकचूर्णि आदि में एवं दिगम्बर के कषायपाहुड, गोम्मटसार, अनगारधर्मामृत वगैरह ग्रन्थों में उपलब्ध होती है। तुलना की दृष्टि से देखा जाए तो इन प्रकारों के स्वरूप आदि में परस्पर समानता है। विविध दृष्टियों से सामायिक
सामायिक समता की साधना है। यह इतनी विराट् एवं व्यापक है कि इस सम्बन्ध में कई ग्रन्थ स्वतन्त्र रूप से लिखे गये हैं। जिनभद्रगणी क्षमाश्रमण रचित विशेषावश्यकभाष्य जो 3600 गाथा परिमाण है, वह सामायिक आवश्यक पर ही लिखा गया है। आवश्यकनियुक्ति, आवश्यकचूर्णि, आवश्यक हारिभद्रीय टीका, आवश्यक मलयगिरि टीका, आवश्यक टिप्पणक, आवश्यक अवचूर्णि आदि छह आवश्यक पर लिखे गये व्याख्या ग्रन्थ हैं। केवल सामायिक अध्ययन पर उपव्याख्या ग्रन्थ भी मिलते हैं। कोट्याचार्यकृत टीका एवं मलधारी हेमचन्द्रकृत टीका मूलत: विशेषावश्यक भाष्य पर लिखी गई है। इनमें सामायिक का विस्तृत एवं गंभीर प्रतिपादन हैं। इस तरह जैन ग्रन्थों में सामायिक विषयक विपुल सामग्री उपलब्ध होती है।
यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि आवश्यक नियुक्ति यद्यपि छ: आवश्यक पर लिखी गई है, किन्तु उसकी प्रारम्भिक लगभग सात सौ गाथाएँ सामायिक अध्ययन का ही विवेचन करती हैं अत: इस संख्या परिमाण तक की नियुक्ति का दूसरा नाम सामायिक नियुक्ति है। इस विभाग में उपोद्घात नियुक्ति के माध्यम से सामायिक के छब्बीस द्वारों की व्याख्या की गई है। ___मुख्यत: नियुक्ति के तीन भेद मिलते हैं- 1. निक्षेप नियुक्ति 2. उपाघात नियुक्ति 3. सूत्र स्पर्शिक नियुक्ति।39