________________
84...षडावश्यक की उपादेयता भौतिक एवं आध्यात्मिक सन्दर्भ में व्यक्ति को सामायिक में स्वाध्याय-जाप आदि ही करने चाहिए। ये सामायिक के कृत्य भी हैं।133 समता का तात्पर्यार्थ
समता का आध्यात्मिक अर्थ है- मन की शांति। जो व्यक्ति समताभाव में है, वह हर स्थिति में तटस्थ रहता है। समता मन को निश्चल-स्थिर रखती है। उसकी अन्तर्रुचि लोकरंजन में न होकर आत्मरंजन की ओर होती है। जो समत्व को प्राप्त कर लेता है, वह व्यक्ति शांत प्रकृति का होता है। समतावान किसी के हृदय को पीड़ा नहीं पहुंचाता है। समतावंत व्यक्ति की मनोवृत्ति सदैव संसार के प्रति उदासीन रहती है। वह हमेशा आसक्त-भावों का स्वामी होता है। उसका प्रत्येक कार्य न्याय-नीतिपूर्ण और प्रामाणिक होता हैं। वह स्वभावदशा में मग्न रहता है। प्रशंसा सुनकर न तो वह हर्षित होता है और न ही निंदा सुनकर दुःखी, इसीलिए ज्ञानी महर्षियों ने समता को मुक्ति का साधन, आत्मकल्याण का मूलाधार कहा है, अतः आत्मार्थियों को समभाव की वृद्धि करने का प्रयास करना चाहिए। सामायिक द्वारा समभाव की साधना सरल बनती है।
समता का एक अर्थ आत्मस्थिरता है। आत्मस्थिरता से तात्पर्य आत्म भाव में लीन रहना, सम्यक् चारित्र रूप वर्तन करना है। आत्म-स्थिरता रूप चारित्र से ही मोक्ष की प्राप्ति होती है। उपाध्याय यशोविजय जी ने कहा है- सिद्ध अवस्था में स्थूलक्रिया रूप चारित्र तो नहीं होता है; परन्तु आत्मस्थिरता रूप निश्चय चारित्र अवश्य रहता है। इसके अभाव में वहाँ शून्य के बिना कुछ नहीं रहेगा।134 सार रूप में समता गुण इतना महान है कि वह कर्ममुक्त आत्मा के लिए भी अपरिहार्य है। सामायिक शुद्धि के प्रकार __ जैनाचार्यों ने द्रव्य सामायिक सम्बन्धी छ: प्रकार की शद्धियाँ बताई हैं। सामायिक अंगीकार करते समय इन शद्धियों का होना अनिवार्य माना गया है। ये शुद्धियाँ सामायिक व्रत को सफल बनाने में निमित्तभूत बनती हैं, अत: प्रत्येक साधक को निम्न छः प्रकार की शुद्धि पूर्वक सामायिक करनी चाहिए
1. द्रव्य शुद्धि- वस्त्र एवं उपकरण का शुद्ध होना द्रव्यशुद्धि है। उपासकदशासूत्र एवं उसकी टीकाओं में वस्त्रशुद्धि के विषय में यह निर्देश प्राप्त होता है कि सामायिक में सामान्य वेश-भूषा और आभूषण आदि का त्याग