Book Title: Sanyukta Prant Ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Shitalprasad Bramhachari
Publisher: Jain Hostel Prayag

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Page 13
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ऐसे समय में भाग्यवश भारतीय इतिहास की शोध का एक नया साधन हाथ आया। देश में जगह २ जो शिलाओं व स्तम्भों व मन्दिरों आदि की दीवारों पर लेख मिलते थे उन पर इतिहास खोजकों की दृष्टि गई । बहुत समय के निरन्तर परिश्रम से विद्वान् लोग इन लेखों की लिपि समझने में सफल हुए जिससे उनकी ऐतिहासिक छान बीन सुलभ हो गई । गत शताब्दि के मध्य भाग में 'सर जेम्स प्रिंसप जैसे प्रतिभाशाली व्यक्तियों के उद्योग से अशोक सम्राट् की शिलाओं व स्तम्भों पर की प्रशस्तियां पढ़ी गईं जिससे भारत के प्राचीन इतिहास निर्माण का एक नया युग प्रारम्भ हो गया। इन लेखों ने भारतवर्ष के अाज से लगभग ढाई हज़ार वर्ष पूर्व के राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक व धार्मिक इतिहास पर अद्भुत प्रकाश डाला और कई ऐतिहासिक भ्रम दूर किये । इससे पुरातत्त्व-जिज्ञासुओं का उत्साह बढ़ा और प्रयत्न करने से धीरे २ देश के भिन्न २ भागों में शतीचीरों, शिला व स्तम्भों, गुफाओं मन्दिरों आदि की भित्तिओं, मूर्तिओं, घटों व ताम्रपत्रों आदि पर खुदे हुए सहस्रो लेखों का पता चला जिनसे समय २ के अनेक ऐतिहासिक वृत्तान्त विदित हुए । साथ ही साथ प्राचीन स्तूप, किले, मन्दिर, महल आदि के खंडहरों, खंडित व पूर्ण मूर्तिओं गुफाओं आदि का भी पता चला जिनसे देश की तत्तत्कालिक कला, कौशल कारीगरी व धन वैभव का सच्चा परिचय मिला । इस खोज में लोगों का For Private And Personal Use Only

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