Book Title: Sanyukta Prant Ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Shitalprasad Bramhachari
Publisher: Jain Hostel Prayag

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Page 12
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यह लिखा "The Jains appear to hare originated in the sixth or seventh century of our era, to have become conspicuous in the eighth or ninth century, got the highest prosperity in the eleventh and declined after the twelfth?". __ अर्थात् जैन धर्म ईसा की छटवीं सातवीं शताब्दि में प्रारम्भ हुआ, ८ वीं ६ वीं शताब्दि में इसकी अच्छी प्रसिद्धि हुई, ११ हवीं शताब्दि में इसने बहुत उन्नति की और १२ हवीं शताब्दि के पश्चात् इसका ह्रास प्रारम्भ हो गया। जैनियों ने इस मत को अप्रमाणित सिद्ध करने का कोई समुचित प्रयत्न और उद्योग नहीं किया। इसलिये पूरी एक शताब्दि तक पाश्चात्य व कितने ही देशी विद्वानों का यही भ्रम रहा । यद्यपि इस बीच में 'कोलक' 'जोन्स"विल्सन' 'टामस', 'लेसन', 'बेवर', आदि अनेक पाश्चात्य विद्वानों ने जैन ग्रन्थों का अच्छा अध्ययन किया और जैन दर्शन की खूब प्रशंसा भी की, पर उसकी उत्पत्ति के विषय में उनके विचार अपरिवर्तित ही रहे। उन्होंने जैन पुराणों में दिये हुए तीर्थंकरों के चरित्र तो पढ़े पर उन पर उन्हें विश्वास न हुआ क्योंकि उन ग्रन्थों के काव्य कल्पना-समुद्र में गोते लगाकर ऐतिहासिक तथ्य रूपी रत्न प्राप्त कर लेना एकदम सहज काम नहीं था। १ Elphinstone History of India P. 121. For Private And Personal Use Only

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