________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अभी तक भारी अंधकार में पड़ा है जिससे उसे संसार में आज वह मान प्राप्त नहीं है जिसका कि वह न्याय से भागी है।
आज से कोई डेढ़ सौ वर्ष पूर्व जब पश्चिमी विद्वानों ने भारत का प्राचीन इतिहास तैयार करना प्रारम्भ किया तव उन्हें इस देश की एक मुख्यजन-समाज जैन जाति के विषय में भी अपनी सम्मति प्रगट करने की आवश्यकता पड़ी। इस सम्मति को स्थापित करने के लिये साधन ढूढने में उनकी दृष्टि “अहिंसा परमो धर्मः" जैसे जैनियों के स्थूल सिद्धान्तों पर पड़ी जो कई अंशों में बौद्ध सिद्धान्तों से मिलते जुलते हैं । अतः वे झट इस राय पर पहुंच गये कि जैन धर्म बौद्ध धर्म की एक शाखा-मात्र है। इस मत को सामने रखकर पीछे २ कई विद्वानों ने जैन धर्म के विषय में खोजें की तो उन्हें इसी मत की पुष्टि के प्रमाण मिले। महावीर स्वामी
और महात्मा बुद्ध के जीवनकाल, जीवन-घटनाओं व उपदेशों व उनके माता पिता और कुटुम्बी जनों के नाम आदि में उन्हें ऐसी समानतायें दृष्टि पड़ी कि उन्हें वे एक ही मनुष्य के जीवन-चरित्र के दो रूपान्तर जान पड़े, और क्योंकि उन्हें जैनियों के पक्ष के कोई भी ऐसे प्रमाण व स्मारक प्राप्त नहीं हुए जिनसे जैन धर्म की स्वतन्त्र उत्पत्ति प्रमाणित होती अतः उनका यह मत पक्का ठहर गया कि जैन धर्म बौद्ध धर्म से निकला है । उस समय के प्रसिद्ध भारत-इतिहास लेखक एल्फिन्स्टन साहब ने अपने इतिहास में जैन धर्म के विषय में
For Private And Personal Use Only