Book Title: Sanyukta Prant Ke Prachin Jain Smarak Author(s): Shitalprasad Bramhachari Publisher: Jain Hostel Prayag View full book textPage 9
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २ ) सम्भावना है । उनमें जैन स्मारक कोई हैं ऐसा प्रगट नहीं हुआ है तौभी यदि उनमें खोज की जावे तो जैन स्मारकों के मिलने की आशा है । ऐसा विचार कर उन स्थानों का भी इस विवरण में उल्लेख कर दिया गया है। जैन समाज के परोपकारी विद्वानों को चाहिये कि इस युक्तप्रान्त के जिलों के वर्णन को पढ़कर वहां स्वयं जाने का कष्ट उठावें और खोज करें। तथा जहां कोई 'प्राचीन स्मरणीय जीर्ण जैन मन्दिर होवे उनका जीर्णोद्धार करावे व जहां कहीं श्रखण्डित जैन प्रतिमानों की अविनय होती हो उनको संग्रह करके विनय योग्य स्थिति में स्थापित करावें । पानीपत १४-८-२३ इस पुस्तक में कनिंघम की सर्वे रिपोर्ट से तथा डा. फुहरर द्वारा लिखित 'मानुमेन्टल एन्टीक्विटीज़ एन्ड इन्ह क्रिपशन्स एन. डब्ल्यू. पी. सन् १८६११, से भी बहुत सी बातें लेकर संग्रह की गई हैं । हमको लखनऊ की पब्लिक लायब्रेरी व अजायबघर लायब्रेरी से भी बहुत मदद मिली । बाबू प्रागदयाल जी क्यूरेटर ने हमको कई बातें बताने में बहुत परिश्रम किया इसके लिये उन्हें धन्यबाद है I ब. शीतलप्रसाद आ. सम्पादक 'जैनमित्र' For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
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