Book Title: Sanyukta Prant Ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Shitalprasad Bramhachari
Publisher: Jain Hostel Prayag

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Page 10
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भूमिका जो लोग इतिहास के महत्व से अनभिज्ञ हैं वे प्रश्न कर सकते हैं कि बहुत समय के पुराने खंडहरों, टूटी फूटी मूर्तिओं व अस्पष्ट, अपरिचित लिपियों और भाषाओं में लिखे हुए शिला लेखों के पतों और विवरणों से पुस्तकों के सफे भरने से क्या लाभ ? ऐसे भोले भाइयों के हितार्थ इतिहास की महत्ता बताने के लिये मैं केवल इतना ही कहना पर्याप्त समझता हूं कि यह उज्वल इतिहास की ही महिमा हैं जो बौद्ध धर्म जिसका कई शताब्दियां हुई हिन्दुस्थान से सर्वथा नाम ही उठ गया है, आज भी विद्वत् समाज में बहुत मान और गौरव की दृष्टि से देखा जाता है, और जैन धर्म, जो कि बौद्ध धर्म से कहीं अधिक प्राचीन है, जिसकी सत्ता आज भी भारतवर्ष में अच्छी प्रबलता से विद्यमान है, जिसकी फिलासफी बौद्ध व अन्य कितनी ही फिलासफियों की अपेक्षा बहुत उच्च और वैज्ञानिक है, व जिसका साहित्य भारत के अन्य किसी भी साहित्य की प्रतिस्पर्धा में मान से खड़ा हो सकता है, ऐसा जैन धर्म अभी तक बहुत कम विद्वानों को रुचि और सहानुभूति प्राप्त कर सका है। बौद्ध धर्म के इति. हास पर इतना प्रकाश पड़ चुका कि उस पर विद्वानों को सहज ही दृष्टि पड़ जाती है । पर जैन धर्म का इतिहास For Private And Personal Use Only

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