Book Title: Sanyukta Prant Ke Prachin Jain Smarak
Author(s): Shitalprasad Bramhachari
Publisher: Jain Hostel Prayag

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Page 8
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपोद्घात । किसी समय जैन धर्म इस भारतवर्ष में चारों ओर फैला हुआ था, यह बात जैनियों के उन प्राचीन स्मारकों से विदित होती है जो देश भर में इधर उधर अंकित हो रहे हैं। सरकारी पुरातत्व विभाग के अफसरों की समय २ पर की खोजों से जिन थोड़े बहुत जैन स्मारकों का पता चला है, उन सब का ब्यौरा भिन्न २ प्रान्तों के 'गजेटियर अर्थात् विवरणों में प्रकाशित हुआ है । यह ठीक अनुमान किया जाता है कि जैन स्मारकों को भारी संख्या अभी खोज और प्रसिद्धि की राह देख रही है । हमने सन् १६२२ की वर्षा ऋतु के चार मास कलकत्ते में बिताये थे। उस समय हमने वहां के सबसे बड़े प्रसिद्ध और सर्वसाधारणपयोगी पुस्तकालय-इम्पीरियल लाइब्रेरी में बैठकर बंगाल विहार उड़ीसा तथा संयुक्तप्रान्त के गजेटियर पढ़े और उनमें जहां २ जैन स्मारकों का कुछ स्पष्ट व शंकित विवरण मिला उसको चुनकर लिख लिया था। बंगाल, विहार और उड़ीसा के विवरण की पुस्तक तो प्राचीन श्रावकोद्धारिणी सभा कलकत्ता द्वारा मुद्रित होकर प्रसिद्ध हो चुकी है अब संयुक्तप्रान्त के जैन स्मारकों का विवरण लिखा जाता है। युक्त-प्रान्त में बहुत से प्राचीन स्थान ऐसे हैं जिनमें जैन स्मारकों के होने की For Private And Personal Use Only

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