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प्राक्कथन ।
यथार्थ परिचय और उसका प्रभाव भिन्न २ कालोंमें तत्कालीन परिस्थितिपर कैसा पड़ा था, यह सब कुछ बतलानेका प्रयास किया गया है। इस इतिहासको हमने ‘भा० दिगम्बर जैन परिषद ' के प्रस्तावानुसार कई वर्षों पहलसे लिखना आरम्भ किया था। मौभाग्य-वश इसका प्रथम भाग जिसमें जैनोंक पुराणवर्णित महापुरुषोंका वर्णन है, सन् १९२६ में ही प्रकट होगया था ! उसके लगभग छह वर्षोंके पश्चात् उसके दूसरे भागका पहला खण्ड विगत वर्ष फरवरी १९३२ में प्रकाशित हुआ था। दूसरे भागमें ई० पूर्व ६०० मे सन् १३०० तकका इतिहास लिखना इष्ट है। उस भागको तीन खण्डोंमें विभक्त किया गया है। पहले खण्डमें भ० महावीरके समयसे शुङ्गकाल तकका वर्णन लिखा गया है। इस दसरे खण्डमें तबसे सन् १३०० तकका उत्तर भारतसे सम्बन्ध रखनेवाला इतिहास प्रकट किया गया है व तीसरे खण्डमें दक्षिणभारतका इनिहास संकलित करना शेष है।
- अन्तिम अंश प्रस्तुत इतिहासका तीसरा भाग होगा और उसमें सन् १३०० के उपरान्त वर्तमानकाल तकका इतिहास प्रकट करना वाञ्छनीय है। किन्तु प्रस्तुत इतिहासको मात्र 'जैन इतिहास' समझना ठीक नहीं है । वस्तुतः वह जैन दृष्टिसे लिखा हुआ और जैनोंकी मुख्यताको लिये हुए भारतवर्षका इतिहास है। इस रूपमें ही उसका. महत्व है। एक जिज्ञासु उसको पढ़ लेनेसे जैन इतिहासके साथ २ भारतवर्षके इतिहासका ज्ञान प्राप्त कर सक्ता है। उसके अतिरिक्त जैन इतिहास विषयका यही अपनी श्रेणीका पहला ग्रन्थ है।
प्रस्तुत इतिहासके प्रथम भाग और दूसरे भागके प्रथम खण्डमें Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com