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संक्षिप्त जैन इतिहास ।
इमारतें बनाई थीं । मथुराके पाससे कनिष्ककी एक सुंदर नर्ति निकली है। कनिष्कका राजवैद्य आयुर्वेदका प्रसिद्ध विद्वान चरक था ।
प्रभाव ।
यद्यपि भारतमें यूनानियों और शकोंका राज्य रहा था और वे लोग यहां पर बस भी गये थे; परन्तु उनकी विदेशी आक्रमणोंका यूनानी या रोमन सभ्यताका प्रभाव भारत पर प्रायः नहींके बराबर पड़ा था । विद्वान् कहते हैं कि बौद्ध धर्मपर अवश्य उसका कुछ प्रभाव पड़ा था । किन्तु ब्राह्मण और जैन धर्मोपर उसका असर कुछ भी नहीं पड़ा था। यूनानी भाषा कभी भारतमें लोकप्रिय नहीं हुई और न भारतियोंने यूनानियोंके वेषभूषा और रहन सहनको ही अपनाया था ! हां, भारतकी स्थापत्य, आलेख्य और तक्षण विद्यापर उसका किंचित् प्रभाव पड़ा था, परन्तु वह नहींके बराबर था। सचमुच उस समयके भारतीयोंके लिये यह बात बड़े गौरवकी है कि उन्होंने अपनी प्राचीन आर्य संस्कृति और सभ्यताको अक्षुण्ण रक्खा । विदेशियों के सम्पर्क में रहते हुये भी वह उनके द्वारा तनिक भी प्रभावित नहीं हुये । प्रत्युत उन्होंने अपनी संस्कृति और धर्मका ऐसा प्रभावशाली असर उन लोगोंपर डाला कि वे उसपर मुग्ध होगये और उनमें से अधिकांश ब्राह्मण, बौद्ध अथवा जैनमतको ग्रहण कर लिया और धीरे २ वह सब मिल जुलकर हिन्दू जनतामें एकमेक होगये ।
कनिष्क और उसके उत्तराधिकारियों - हुविष्क और वासुदेवके
१- लाभाइ०, पृ० १९७ - २०४ । २- अहिइ० पृ० ४२९ व लाभाइ० पृ० २०३ ।
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