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उत्तरी भारतके अन्य राजा व जैनधर्म । [ १५५
सं० ९०९ में धारानगर के पार्श्वनाथ चैत्यालय में 'दर्शनसार' ग्रंथकी रचना की थी । *
राजा भोजका युद्ध गुजरातके चालुक्य राजा भीमसे हुआ था: परन्तु अन्त में इन दोनों के बीच सन्धि हो गई थी । राजा भोजके जैन सेनापति कुल
राजा भोज और
जैनधर्म ।
चन्द्र ने अनहिलवाड़ा में भीमको हरा दिया
था ।' राजा भोज के दरबारमें जैनोंका सम्मान विशेष था; यद्यपि वह स्वयं शैव था । 'वह जैनों और हिन्दुओंके शास्त्रार्थका बड़ा अनुरागी था ।' श्रवणबेलगोलसे प्राप्त संभवतः सन् १११५ ई० के लेखसे प्रगट है कि भोजने प्रभाचन्द्र जैनाचार्य के पैर पूजे थे । दूबकुण्डबाले शिलालेखसे प्रगट है कि 'भोजके सामने सभामें शान्तिसेन नामक जैनने सैकड़ों विद्वानोंको हराया था। क्यों: कि उन्होंने उसके पहले अम्बरसेन आदि जैन विद्वानोंका सामना किया था।' भोजकी सभा में कालिदास, वररुचि, सुबन्धु, बाण, अमर, राम-देव, हरिवंश, शङ्गर, कलिङ्ग, कर्पूर, विनायक, मदन, राजशेखर, माघ, धनपाल, सीता, मानतुङ्ग, आदि विद्वानोंका होना बताया जाता है । धनपाल जैन थे, यह पहले लिखा जाचुका है। शोभनके जैन होनेपर भोजने कुछ समयतक जैनोंका धारामें था । कालिदास कवि मेघदूत आदि ग्रंथोंके रचयिता कालिदाससे भिन्न थे। इनकी स्पर्द्धा जैनाचार्य मानतुङ्गजीसे विशेष थी । इनके उकसानेपर भोजने मान तुङ्गाचार्यको अड़तालीस कोठरियों के भीतर
आना बंद कर दिया
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* विर०, पृ० ११५ । १- भाप्राए० भा० १ पृ० ११५ ।
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२- भाप्रा० भा० १ पृ० ११८-१२१ !
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