Book Title: Sankshipta Jain Itihas Part 02 Khand 02
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 184
________________ उत्तरी भारतके अन्य राजा व जैनधर्म। [१६३ भी बंगाल-बिहार में हैं। मानभूम जिलेके सराक लोग आज भी वहांपर फैले हुये प्राचीन जैनधर्मको प्रगट कर रहे हैं। ये प्राचीन जैन श्रावक हैं । सिंहभूम जिलेपर एक समय जैनोंका अधिकार था। वहां इन प्राचीन श्रावकोंने जंगलोंमें घुसकर तांबकी कानें सोधी थीं और अपने धार्मिक स्मारक वहां बनवाये थे । वामन घाटीसे दो ताम्रपत्र १२०० ई०के मिले हैं जिनसे प्रगट है कि मयूरभंजके भंजवंशके राजाओंने बहुतसे ग्राम जिनमंदिरोंको भेट किये थे। इस वंशके संस्थापक वीरभद्र थे, जो एक करोड़ साधुओंके गुरु थे। ये जैन थे।' ऐसे ही और भी अनेक जैन लेख बिखरे हुये पड़े हैं। जो हो, बंगालमें भगवान महावीरके समयसे लेकर ७ वीं शताब्दि ई० तक जैनधर्म सफलतापूर्वक फैला हुआ था। ओड़ीसामें खारवेलके वंशजोंके बाद आन्ध्रवंशका अधिकार होगया था और ये प्रायः बौद्धधर्मानुयायी ओड़ीसाके अंतिम थे । उपरांत ययाति केसरी द्वारा स्थापित राजा व जैनधर्म । केसरी वंशने वहां १२ वीं शताब्दितक राज्य किया था। उनके समयमें जैनधर्मका पुनरुत्थान हुआ मालम होता है; क्योंकि उद्योतकेसरी राजाके राज्यकालके कई जैन लेख मिले हैं, जिनसे वहांपर जैनाचार्यों द्वारा धर्म प्रचार होनेका बोध होता है । इन आचार्यों में शुभचंद्र और यशनंदि उल्लेखनीय हैं । जब गङ्गराजाओंका अधिकार ओड़ीसापर हुआ तो उन्होंने चरण-ब्राह्मणोंके कहनेसे जैनियोंको बहुत सताया। इस अत्याचारसे जैनोंका अस्तित्व ही वहां मुश्किल होगया । १-पूर्व० पृ० ६५-६६ । २-पूर्व पृ० ९२-१०४। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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