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उत्तरी भारतके अन्य राजा व जैनधर्म।। था। इनके उपरान्त महाराणा भीमसिंह, कुम्भ इत्यादिने जैनधर्मके लिये जो किया, वह हम तीसरे भागमें देखेंगे। राजपूतानामें उदयपुरके बाद मारवाड़की विशेष प्रसिद्धि है।
राजपूतानावासी वैश्य — मारवाड़ी ' नामसे मारवाड़में जैनधर्म । सर्वत्र प्रख्यात् हैं । सन् १२२६के लगभग
___ मारवाड़में राठौर क्षत्रियोंका अधिकार होगया था। राठौर अथवा राष्ट्रकूट वंशके पूर्वजोंमें जैनधर्मकी मर्यादा विशेष रही थी। मारवाड़के राठौरोंमें चक्रेश्वरी देवीकी विशेष मान्यता है; जो तीर्थङ्करकी शासन देवता हैं। मारवाड़ राठौर वंशके चौथे राजा राव रायपालजीके तेरह पुत्र थे; जिनमें ज्येष्ठ पुत्र कनकपाल वि०सं० १३०१ में राज्याधिकारी हुये थे। शेष पुत्रोंमें एक मोहनजी नामक भी थे । मोहनजीने अपना दूसरा विवाह एक श्रीश्रीमाल कन्यासे किया था जिससे उनके सप्तसेन नामक पुत्र हुआ था । सप्तसेनने जैनधर्म स्वीकार कर लिया था और वह ओसवाल जैनियोंमें सम्मिलित होगया था । उसकी संतान आजकलके मुहणोत ओसवाल हैं। मारवाड़के राज्यशासनमें उनका हाथ रहा है। उनमें मंत्री और सेनापति कई हुये हैं । मुहणोतोंके अतिरिक्त जोधपुर राजमें भंडारी ओसवालोंका भी हस्तक्षेप रहा है। भंडारी ओसवाल अपनी उत्पत्ति अजमेरके चौहान घरानेसे बताते हैं । इनके पितामह राव लक्षमण (लखमसी)ने अजमेरके घरानेसे अलग हो नाडौलमें अपना एक प्रथक
१-राई०, भा० १ पृ० ३८१ । २-भाप्रारा०, भा० ३ पृ० , ११८-१२५ । ३-सडिजै०, पृ० ३३-३४ व भाप्रारा०, भा०३ पृ० १२७ ।
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