Book Title: Sankshipta Jain Itihas Part 02 Khand 02
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 189
________________ १६८] संक्षिप्त जैन इतिहास। राजकुल स्थापित किया था। लखमसी एक महापुरुष और वीर देशभक्त था । उसने अन्हिलवाड़से कर व चित्तौड़के राजासे खिराज वसूल किया था । नाडौलका किला उसीने बनवाया था। उसके २४ पुत्र थे; जिनमें एक दादराव थे। भण्डारी कुलके जन्मदाता यही थे । सन् ९९२ ई० में श्री यशोभद्र सूरीके उपदेशसे उन्होंने जैनधर्म ग्रहण किया था । दादराव राजभंडारके अधिकारी थे । इसी कारण उनका वंश 'भण्डारी' नामसे परिचित हुआ है । जोधपुरमें जबसे यह लोग आये तबसे इनकी मान्यता राजदर्बारमें खूब है और ये बड़े २ पदोंपर रहे हैं । नाडौलके चौहान राजाओंकी भी उन्होंने खूब सेवा की थी। वि० सं १२४१ में भण्डारी यशोवीर पल्ल ग्रामके अधिकारी बना दिये गये थे। उन्होंने महाराज समरसिंहदेवकी आज्ञानुसार एक जैन मंदिरका जीर्णोद्धार कराया था। भंडारी मिगल इसी राजाओंके मंत्रियोंमेंसे एक थे ।' नाडौलके कई एक राजाओं और रानियोंने जैन मंदिरोंके लिये दान दिये थे। उनके पुण्यमई कार्योसे यह बात बिल्कुल स्पष्ट है कि मारवाड़के राजवंशपर जैनधर्मका खूब प्रभाव था । चौहान राजकुलमें प्रख्यात् राजा अल्हणदेव थे। उन्होंने सन ११६२ में नाडोलके श्री महावीरजीके जैन नाडौलके चौहान मंदिरके लिये दान किया था। अल्हणके और जैन धर्म। पिता अश्वराज थे और उसने वि० सं० १२०९ से १२१८ तक चालुक्य नृप कुमारपाल जैनके सामन्तरूपमें राज्य किया था। जैनधर्मको उसने खूब १-सडिजे०, पृ० ३५-३७ । २-डिजैबा०, भा० १ पृ० ४३ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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