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१८०] संक्षिप्त जैन इतिहास । राजपूतोंको जैनी बना लिया था। सं० ११९६ में जिनदत्तसूरिने एक यदुवंशी राजाको जैनधर्ममें दीक्षित किया था, जो मांस-मदिरा भक्षक था। सं० ११६८ में सोलंकी राजपूत भी जैनधर्मको ग्रहण कर चुके थे । सं० ११९८ में जैनाचार्यने भाटी राजपूत राजाको भी जैनी किया था। सं० ११८१ में चौहानोंकी २४ जातियां जैनी हुई थीं। दीवान राठी महेश्वरी भी जैनी हुये थे। - श्री नेमिचंद्रसूरिने सं० ११८७ में कितने ही राजपूतोंको जैनी किया था। सं० ११९७में सोनीगरा जातके राजपूत राजाको जैनधर्मानुयायी बनाया था ।" नागर वैश्य भी पहले जैनधर्ममें दीक्षित किये जा चुके हैं। परवार जैनी भी इसी समयके लगभग जैनधर्ममें दीक्षित किये गये थे। ऐसे ही अन्य बहुतसे लोगोंको जैनाचायोंने जैनधर्मकी शरणमें ला बैठाया था। श्री जिनसेनाचार्यने अपने 'आदिपुराण में स्पष्ट लिखा है कि प्रत्येक मुमुक्षुको जैनधर्मकी दीक्षा देना चाहिये और उसको आजीविकाके अनुसार उसका वर्ण स्थापित करके प्राचीन जैनोंको उसके साथ रोटी-बेटीव्यवहार करना चाहिये। रोटी-बेटीका व्यवहार इस कालमें उच्च वर्गों तक ही सीमित नहीं था; बल्कि शूद्रोंकी कन्यायें ग्रहण करली जाती थी। हाँ प्रतिलोभ विवाहका रिवाज बन्द सा हो गया था। स्वयंवर प्रथाका बाहुल्यतासे प्रचार था। खान-पानके लिये भोज्य शूद्रों तकके यहांका शुद्ध निरामिष भोजन ग्रहण करना अनुचित नहीं समझा जाता था।
१-मादिपुराण पर्व ३९ श्लो० ६१-७१ । २-मादिपुराण पर्व ४२। ३-प्रायश्चित समुच्चय पृ० २१२। .
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