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संक्षिप्त जैन इतिहास। जैनधर्म मेवाड़में खूब फलाफूला है। मेवाड़की प्राचीन कीर्तियां इस बातकी साक्षी हैं। चितौड़में जैन कीर्तिस्तंभ एक अपूर्व जैन शिल्प है। उसके नीचे एक पाषाण खंड परके सं० ९५२ के लेखसे उस समय वहांपर बहुतसे दिगंबर जैनियोंका होना प्रगट है। जैन कीर्तिस्तंभको दिगंबर संप्रदायके बघेरवाल महाजन सा (साह) नामके पुत्र जीजाने वि० सं०की १४ वीं शताब्दिके उत्तरार्द्ध में बनवाया था। इस स्तंभके पास ही एक प्राचीन जैन मंदिर भी मौजूद है। चितौड़में गोमुखके निकट महाराणा रायमलके समयका बना हुआ एक और जैनमंदिर है; जिसकी मूर्ति दक्षिणसे लाई गई थी।
उदयपुरमें विशेष मान्य और प्राचीन जैन स्थान केशरियाजी ऋषभदेवका है। यहांकी मूर्ति अत्यन्त प्राचीन है। दिगंबर जैनाचार्य श्री धर्मचन्द्रजीका सामान और विनय महाराणा हम्मीर किया करते थे। सं० १२९५में रामपालदेवका राज्य था, तब गोहिलवंशीय उद्धरणके पुत्र राजदेवने, जो रामपालके आधीन था, करका बीसवां भाग नादलाईके जैनमंदिरको पूजाके वास्ते दिया था। (मप्राजैस्मा० पृ० १४७) नादालके पद्मप्रभके मंदिरमें सं० १२१५ के लेखसे प्रगट है कि राणा जगतसिंहके मंत्री जयमल्लने वह मंदिर बनवाया था। वि० सं० १३३५ (१२७१ ई०)में रावल समरसिंहकी माता जयतलदेवीने चितौड़में श्याम पार्श्वनाथका मंदिर बनवाया
... १-मप्राजैस्मा०, पृ० १३४ । २-राइ०, भा० १ पृ० ३५२
३५४ । ३-राई०, भा० १ पृ० ३४६ । ४-'श्री धर्मचन्द्रोऽजनि तस्य
पट्टे हमीरभूपालसमर्चनीयः ।' जैहि०, भा० ६ अंक ७-८ पृ० २६ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com