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१५४] संक्षिप्त जैन इतिहास। राजा मुंजके समयमें ही प्रसिद्ध दिगम्बर जैनाचार्य श्री अमि
तगतिजी हुये थे। यह माथुरसंघीय माधवअमितगति आचार्य । सेनके शिष्य थे। कहते हैं कि वि० सं०
१०२५ के कुछ पहिले इनका जन्म हुआ था। 'आचार्यवर्य अमितगति बड़े भारी विद्वान और कवि थे। इनकी असाधारण विद्वत्ताका परिचय पानेको इनके ग्रंथोंका मनन करना चाहिए । रचना सरल और सुखसाध्य होनेपर भी बड़ी गंभीर और मधुर है। संस्कृत भाषापर इनका अच्छा अधिकार था। इन्होंने अपने 'धर्मपरीक्षा' नामक ग्रंथको केवल दो महीनेमें लिखकर समाप्त किया था, जिसे पढ़कर लोग मुग्ध हो जाते हैं । सन् १०१३ ई० में यह ग्रंथ पूर्ण हुआ था। इसके पहले सन् ९९३में आचार्यवर्यने 'सुभाषित रत्नसंदोह' नामक ग्रंथ रचा था। इनके अतिरिक्त उन्होंने (१) श्रावकाचार (२) भावनाद्वात्रिंशति, (३) पंचसंग्रह, (४) जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति, (५) चन्द्र प्रज्ञप्ति, (६) सार्द्धद्वयद्वीप प्रज्ञप्ति, (७) व्याख्याप्रज्ञप्ति, (८) योगसार प्रभृति ग्रंथ रचे थे। ‘पंचसंग्रह' नामक ग्रंथको आपने राजा भोजके पिता सिंधुराजके समयमें लिखा था । उसकी प्रशस्तिमें आचार्यवर्य अपनेको गौतम गणधरके समान लिखते हैं । उनके अद्वितीय ग्रंथोंको प्रकाशमें लानेकी आवश्यक्ता है ।' श्री महाकवि सेामदेवसूरि इन आचार्यके समकालीन थे जिन्होंने यशस्तिलकचम्पू, नीतिवाक्यामृत आदि ग्रंथ रचे थे। अमितगतिजीके गुरु माधवसेनके सहपाठी प्रसिद्ध विद्वान आचार्य देवसेन थे जिन्होंने
१-हिवि०, भा० २ पृ० ६४ ।
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