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संक्षिप्त जैन इतिहास |
प्रशस्ति में नरवर्माका जैन वल्लभमूरिके चरणोंपर सिर झुकाना लिखा है । नरवर्मा के पुत्र यशोवर्माने अपनी ओरसे जैनधर्मावलम्बी मंत्री जैनचंद्रको गुजरातका हाकिम नियत किया था । परमार राजाओंका सम्पर्क गुजरात से होने का ही यह परिणाम प्रतीत होता है कि श्वेतां-बर जैनाचार्य भी मालवा की ओर आगये थे और उन्होंने राजदरबार में मान्यता प्राप्त की थी ।
इसी वंशका विन्ध्यवर्मा नामक राजा भी विद्याका बड़ा अनुरागी था, उसके मंत्रीका नाम बिल्हण था । कविवर आशाधर । कविवर आशाधरकी मित्रता इनसे अधिक थी । आशाघर एक प्रसिद्ध जैन पण्डित होगये हैं । ई० सन् १९९२ में दिल्लीका चौहान राजा पृथ्वीराज शाहाबुद्दीन गोरीसे हार गया था; इस कारण उत्तरी भारत में मुसल• मानोंका आतंक छा गया था | अनेक हिंदू विद्वानोंको अपना देश छोड़ना पड़ा था । कविवर आशाधर भी ऐसे विद्वानों में से एक थे । मूलमें आशाधर सपादलक्ष देशके मंडलकर ( मांडलगढ़मेवाड़ ) नामक ग्रामके निवासी थे । तब यह देश चौहानोंके अजमेरे राज्य के अंतर्गत था । आशाधरजीका जन्म वि० सं० १२३५ के लगभग बघेरवाल जैन श्रेष्टी सल्लक्षणकी भार्या रत्नीकी कोख से हुआ था । मुसलमानों के आतन्कसे बचने के लिये आशाधर सपरिवार धारानगरी में जा बसे थे । धारानगरी में उन्होंने वादिराज पं० धरसेनके शिष्य पं० महावीर से जैनेन्द्र व्याकरण और जैन सिद्धांत १ - भावारा० भा० १ पृ० १४४-१४५ । २- भाप्रारा० भा० १ पृ० १५६ ।
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