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अन्य राजा और जन संघ ।
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श्री देवसेनाचार्यजीके " दर्शनसार " नामक दि० मतानुसार वे० ग्रन्थके अनुसार विक्रम संवत् १३६ में संप्रदाय की उत्पत्ति । श्वेतांबर संप्रदायकी उत्पत्ति हुई प्रमाणित है ।' मोरठ देशकी वल्लभी नगरी में यह संप्र
दाय उत्पन्न हुआ था । किन्तु भट्टारक रत्ननंदिके 'भद्रबाहु चरित्र' एवं श्रवणबेलगोलके शिलालेखों तथा श्वेतांबरोंकी मान्यताओंसे प्रगट है, जैसे कि हम देख चुके हैं कि जैनसंघ में भद्रबाहुजी श्रुतकेवलीके समय ही भेद पड़ गये थे । बौद्ध ग्रंथोंसे भी जैन संघका भगवान् महाबीरके उपरांत विभक्त होना सिद्ध है । ये बौद्ध ग्रंथ सम्राट् अशोक के समय संशोधित और निर्णित हुये थे । अतएव सम्राट् चंद्रगुप्त के समय में जैन संघ में भेद पड़ा देखकर उन्होंने उक्त प्रकार उल्लेख किया है । इस दशा में देवसेनाचार्यका सं० १३६ ( सन् ८०-८१ ) में श्वेतांबरोंकी उत्पत्ति होना बताना कुछ उचित नहीं जंचती; किन्तु उनका यह कथन तथ्यपूर्ण है ।
श्वेतांबर भी दिगम्बर संप्रदाय की ओर से उपस्थितकी जानेवाली गाथा के समान ही एक गाथा द्वारा दिगम्बरों की उत्पत्ति लगभग इसी समय प्रगट करते हैं । उसपर भट्टारक रत्ननंदिके 'भद्रबाहु चरित्र '
१ - छत्तीसे वरिससए विक्कमरायस्स मरण पत्तस्स | सोट्ठे बल - - हीए उप्पण्णो सेवडो संघो ।। ११ ।। - दर्शनसारः । २-दीनि० ३ पृ० ११७- ११८, मनि० भा० २पृ० १४३ व भमवु० पृ० २१४ ३ - "छवास सहस्सेहिं नवुत्तरेहिं सिद्धिं गवस्स वीरस्स । तो बोडिया विट्ठी रहवीरपुरे समुपन्ना ॥” किन्तु गाथा दिगम्बर ग्रन्थकी निम्न गाथाका
श्वेतांबरोंकी यह प्रमाणभूत रूपांतर प्रतीत होता है ।
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