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संक्षिप्त जैन इतिहास। थे। उस समय यहां ललितकलाओंकी शिक्षाका खासा प्रबन्ध था. और यहांकी कलाका प्रभाव विदेशोंकी कलापर भी पड़ा था।' ____ गुप्तकालमें भारतीय व्यापारकी भी खूब उन्नति हुई थी। जैन
श्रेष्टी दूर दूर देशोंसे व्यापार करते थे । उस समयके व्यापारी। पश्चिमीय देशोंसे यह व्यापार खूब बढ़ा था।
रोमके जहाज दक्षिण भारतमें आते थे और मसाले, इत्र, हाथीदांत, बढ़िया वस्त्र, पत्थर आदि लेजाते थे । मिस्र देशका अलेकज़न्ड्रिया नगर तब भी इस भारतीय व्यापारका केन्द्र था। वहां भारतीय व्यापारी मौजूद थे। देशमें तब व्यापारके कई मार्ग थे । एक तो मौर्य राजाओंके कालकी सड़क पाटलिपुत्रकी पश्चिमोत्तर सीमातक जाती थी। दूसरी मच्छलीपट्टनसे भड़ौचको जाती थी। भड़ौंच प्रसिद्ध बन्दरगाह था । रोमके विद्वान् लिनीका कथन है कि रोमसे प्रतिवर्ष लाखों रुपया भारतको जाता था । जावा आदि पूर्वीय देशोंके साथ भी व्यापार होता था। इसका सम्बन्ध खासकर कलिङ्ग देशसे था। मध्य-ऐशियामें एक हूण नामकी जाति रहती थी। इस
जातिने भारतपर आक्रमण किया था और उसके सरदार तोरमाणने सन् ५१० के
लगभग भारतमें अपना राज्य स्थापित किया था, यह पहले कह चुके हैं। उसके बाद उसका पुत्र मिहिरकुल हूणोंका राजा हुआ। वह बढ़ा अत्याचारी शासक था । कहते हैं
१-भाइ० पृ०९५-९६ । २-जमीसो० भा० १८ पृ० ३१०। ३-भाइ० पृ० ९७। ४-इंहिका० भा० १ पृ० ३१५ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com