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संक्षिप्त जैन इतिहास |
दक्षिण भारत में जैनधर्मका अधिक प्रचार होनेके कारण, उत्तरी भारतकी अपेक्षा, वहां मांसका रिवाज कम था। स्त्रियोंकी तब राजनैतिक स्थिति भी मानी जाती थी। उन्हें भी जायदाद दी जाती थी । स्त्रियोंका भी सम्पत्तिपर अधिकार होता था । साधारण नागरिक- स्त्री-नागरिक भी अपनी इच्छानुसार धर्मपरिवर्तन में स्वतंत्र था । साधारण जनताका प्रायः प्रत्येक कार्य ग्रामीण पंचायतों द्वारा होता था । सरकारी न्यायालय भी स्थान २ पर होते थे । शासन विधान परिष्कृत रूपमें था " |×
चीनी यात्री हुएनसांगका विवरण |
सन् ६३० ई० में हुएन त्सांग नामक एक चीनी यात्री भारतमें आया था । उसने सारे भारतका पर्यटन किया था और यहां १६ वर्ष रहकर वह सन् ६४५ ई० में अपने देशको लौटगया था । उसकी यात्राका हाल एक पुस्तकमें लिखा मिलता है । वह अफगानिस्थान से होकर भारतमें दाखिल हुआ था । उसे अफगानिस्तानमें दि० जैन लोग एक बड़ी संख्या में मिले थे । कावुलका राजा हिन्दू था । यदि कालके आसपास के पुरातत्वकी खोज की जाय, तो जैन चिन्ह मिलना संभव है । अफगानिस्तानसे अगाड़ी चलकर पेशावर व कान्धार में भी जैनोंकी बाहुल्यता थी । सिंहपुर में हुएन त्सांगको दिगम्बर और श्वेतांबर दोनों संप्रदायके जैनी मिले थे। गांधार में भी उसे जैनी अधिक संख्या में मिले थे।
x त्यागभूमि, वर्ष २ भा० १ ० ३००-३०३ । १ - कंजाऐई० पृ० ६७१ । २- भाप्रास६० पृ० १९ व कंजाएंई पृ० १४३ । ३पृ० ६७१ ।
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