Book Title: Sankshipta Jain Itihas Part 02 Khand 02
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 145
________________ १२४] संक्षिप्त जैन इतिहास। था । राष्ट्रकूटवशको गुजरातवाली शाखामें इन्द्रका उत्तराधिकारी कर्क प्रथम (८१२-८२१) हुआ था, जिसने नौसारी (सूरत)के एक जैन मंदिरको अम्बापातक नामका ग्राम भेट किया था । सन् ९१० ई०के लगभग राष्ट्रकूटवंशकी इस शाखाका अंत होगया था। सन ९७२ ई०में गुजरात पश्चिमी चालुक्य राजा तैलप्पके अधिकारमें चला गया। गुजरातमें चावड़वंशका राज्य भी सन् ७२० से ९६१ तक रहा था। पहले चावड़ सरदार पंचासर ग्राममें चावड़ राजाओंके राज्य करते थे । सन् ६९६ में जयशेखर जैनकार्य । चावड़को चालुक्य राजा भुवड़ने मार डाला। उसकी रूपसुंदरी नामक स्त्री गर्भवती थी । इसीका पुत्र वनराज था; जिसने अनहिलवाड़ा वसाया और अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित करके सन् ७४६ से ७८० तक राज्य किया। वनराज जैनधर्मानुयायी था। इसने पंचासर पार्श्वनाथजीका जैन मंदिर बनवाया था । वनराजका उत्तराधिकारी उसका भाई योगराज हुआ और उसके पश्चात् चार राजाओंने इस वंशमें सन् ९६१ तक राज्य किया था। वनराजका मुख्य मंत्री चम्पा नामक जैन श्रेष्ठी था; जिनका व्यापार अफरीका व अरबसे खूब चलता था, उन्होंने -इऐ०, भा० १२ पृ० १३-१६-यह जैनमुनि अर्ककीर्ति श्री कीाचायके अन्वयमें थेः । श्री यापनीय नेमिसघनागवृक्षमुलगणे श्री कील्चर्यान्वये ॥” २-बंगाजैस्मा० पृ० २०० । ३-भाप्राए. भा० ३ पृ० ७५ | ४-बंप्राजैस्मा०, पृ० २०२-२०३ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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