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संक्षिप्त जैन इतिहास ।
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उत्तरी भारतके अन्य राज ब जैनधर्म । हर्षके बाद उत्तर भारतमें कोई ऐसा शक्तिशाली राजा नहीं
था जो उसके विस्तृत साम्राज्यका समुचित राजपूत और प्रबन्ध करता। इसका परिणाम यह हुआ जैनधर्म । कि साम्राज्य छिन्नभिन्न हो गया और अनेक
छोटे २ राज्य वन गये । इनमें से अधिकांश राजपूतोंके अधिकारमें थे । 'राजपूत' शब्द राजपुत्रका अपभ्रंश है
और यह राज्य सत्ताधिकारी क्षत्रियोंका द्योतक है। कहा जाता है कि मंभवतः राजपूत विशुद्ध आर्य क्षत्रियोंकी संतान नहीं हैं। ‘जैसे अन्य जातियां मिश्रित हैं, उसी प्रकार राजपूत जाति भी अनेक जातियोंके मिश्रणसे बनी हैं। इन्हीं लोगोंकी प्रधानता उत्तर भारतमें मुसलमानोंके आक्रमण तक रही थी। इन लोगोंने जैनधर्मका भी अपनाया था। जैनोंके एक प्राचीन गुटकेमें इन चौहान, पड़िहार आदि राजपूत क्षत्रियोंको जैनधर्मभुक्त और उनके कुलदेवता चक्रेश्वरी, अम्बा आदि शासन देवियां प्रगट की हैं ।२. गुप्त राजाओंके समयमें कन्नौज बड़ी उन्नत दशामें था। 'नवीं
शताब्दिमें फिर यहांका राज्य उत्तरीभारतके कनोजके राजा भोज राज्योंमें सर्व प्रधान हो गया। इस समय परिहार । भोज परिहार ( ८४०-९० ई०) वहांका
राजा था। इससे पहले सन् ७१२ में १-भाई०, पृ० १०६ । २--वीर०, वर्ष ३ पृ. ४७२ । ३-भाई०, पृ० १०८-१०९ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com