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संक्षिप्त जैन इतिहास |
ब्दि तक जैनोंका प्राबल्य अधिक था। यहांके निवासियोंने ५२ जिनप्रतिमाओंकी प्रतिष्ठा कराई थी। सं० ११६८ में यहां पर चौहान राजा उदयराजदेवका राज्य था।' अहिच्छत्र (बरेली) का प्रसिद्ध राजा मयूरध्वज भी जैनी था। संभव है कि इस राजाका सम्बन्ध श्रावस्तीके ध्वज् नामान्तक राजाओंके जैनवंशसे है । इस देशमें जैनधर्म उन्नति पर था । अहिच्छत्र ई० सन् १००४ तक
बसा हुआ था । "
कहते हैं कि सन् २७५ ई० में ग्वालियर की स्थापना राजा सूर्यसेन द्वारा हुई थी । भोजदेव परिहार ( ८८२ ई० ) के कनिष्ठ पौत्र विनायक - पालके बाद कच्छवाहा वंशी वज्रदामा ग्वालि
ग्वालियरके राजा और जैनधर्म |
यरपर अधिकार करके नवराज वंशके प्रति - ष्ठाता हुए थे । यहां एक जैनमूर्तिके पवित्र अङ्गमें उत्कीर्ण वज्रदामाकी शिलालिपिसे प्रगट है कि वह लक्ष्मणके पुत्र थे और उन्होंने ही पहले गोपगिरी दुर्गमें जयढक्का बजाया था । सास बहूके दिगम्बर जैन मंदिर में स० ११५० व ११६० के उत्कीर्ण इस वंशके राजा महीपालके दो शिलालेखोंसे जाना जाता है कि वज्रदामाके पुत्र मङ्गल थे और उनके वंशज क्रमशः कीर्तिपाल, भुवनपाल, देवपाल, पद्मपाल, सूर्यपाल, और महीपाल थे । इन सबने ग्वालियर में राज्य किया । उपरांत मधसूदन कच्छावाहाके हाथसे ग्वालियर निकलकर परिहार वंशी क्षत्रियोंके अधिकार में पहुंच गया था । राजा कीर्तिसिंहके समय में ग्वालियर में खूब शिल्पकार्य हुआ था । जैन शिल्प
१ - प्राजैलेसं०, भा० १ पृ० ९९ । २ - संप्रा जैस्मा०, पृ० ८१ ।
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