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संक्षिप्त जैन इतिहास ।
उनमें से कई एक जैनधर्मानुयायी थे। श्रावस्ती, विविध राजवंशों में मथुग, असाईखेड़ा, देवगढ़ आदि स्थान जैनधर्म। जैनधर्मके मुख्य केन्द्र थे। राजा कीर्ति
वर्माके मंत्री वत्सराजका एक जैनलेख सन १०९७ का राजघाटीके पाससे मिला है।' ११ वीं शताब्दिमें श्रावस्तीमें जैनधर्म बहुत उन्नति पर था। वहां पर जैन धर्मानुयायी राजवंश एक दीर्घकालसे राज्य कर रहा था । इस वंशका मर्व अंतिम राजा सुहृध्वज़ नामक था। हाथिली नामक ग्राममें उसने सैयद सालारको लड़ाईमें तलवारके घाट उतरा था। सुहृदध्वजकी इस विजयसे करीब ४० वर्ष पीछे इस जैनवंशका अन्त हुआ था। कहते हैं कि एक दफे राजा ग्रामान्तरसे लौट नहीं पाया कि सूर्यास्त हो चला। रात्रि भोजन निषिद्ध जानकर रानी बड़ी छटपटाई परंतु परम शीलवती राजाके छोटे भाईकी पत्नीके शीलप्रभावसे सूर्यास्त होते २ बच गया और राजाने सानन्द भोजन किया। किन्तु बादमें राजाकी नियत अपने छोटे भाईकी इस साध्वी म्री पर टल गई और उसीके शापसे इस वंशका अन्त हुआ था।' श्रावस्तीके अतिरिक्त अयोध्याके राजा महीपाल और सगरपुरके राजा सागर भी जैन धर्मानुयायी थे । ईसवी ग्यारहवीं शताब्दिमें फैजाबादमें श्रीवास्तम् नामक वंशका राज्य था । इस वंशका मुख्य राजा तिलोकचंद जैनधर्मानुयायी था; जिसका युद्ध मुहम्मद गजनवीके सिपहसालारसे हुआ था । बनारसके राजा भीमसेन भी जैनी थे ।
१-संप्रास्मा०, पृ० ५१ । २-संप्राजैस्मा०, पृ० ६५ । ३-०, पृ० २४० । ४-समाजैस्मा०, पृ० ७० । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com