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संक्षिप्त जैन इतिहास ।
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जैनधर्म उन्नति पर था । खुजराहो में इन्हीं राजासे आदर प्राप्त सूर्यवंशी पाहिलने सन १९५४ में जिननाथके मंदिरको अनेक उद्यान दान किये थे । सं० १२१५ को गृहपतिकुलंक पाहिलके पुत्र दंडने एक जैन - विम्बकी प्रतिष्ठा कराई थी। घटाईका प्रसिद्ध मंदिर भी इसी समयका बना हुआ है। यहांके नं० २५ वाले मंदिर में राजपुत्र श्री जयसिंहका उल्लेख है। ऐसे ही अन्य लोगोंने भी अनेक जैनमंदिर बनवाये थे । सन् १२०३ में चन्देलोंको मुसलमानोंने जीत लिया था । दसवीं शताब्दिके लगभग बहाड़ प्रान्त में ईल नामक राजा प्रसिद्ध हो गया है। यह जैनी था । इसने राजा ईल और सन् १००० में अपने नामसे इलिचपुर (ईले - जैनधर्मका अभ्युदय । शपुर ) नगर बसाया था । मुसलमानोंके हाथों वह मारा गया था । 'भक्तामरकथा' (का०२०) से प्रगट है कि नागपुर में भी लगभग इसी समय नाभिराज नामक एक जैनधर्मानुयायी राजा था । ' और ' प्रभावक चरित्र' से प्रगट है कि सं० १९७४ में नागपुरका राजा आल्हादन नामका था, जो जैनाचार्य मुनिचन्द्रका शिष्य था । किन्तु बहाड़ प्रान्तमें विक्रमकी आठवीं शताब्दिसे दसवीं शताब्दि तक क्रमशः चालुक्य और राष्ट्रकूट राजाओंका राज्य रहा था । ये दोनोंही राजवंश जैनधर्मके पोषक थे; इस कारण उक्तकालमें जैनधर्मका यहां खूब प्रचार रहा था।'
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१ - मप्रायस्मा०, पृ० ११६-११७ । २ - हिवि०, भा० ५ पृ० . ६८० । ३ - संप्राजेस्मा०, पृ० ४३ । ४- मप्राजैस्मा०, पृ० १४. भूमिका । ९ - जैप्र०, पृ० २४० । * - डिजैवा० पृ० ४२ । ६ - मप्राजैस्मा०, पृ० १४ भूमिका ।
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