Book Title: Sankshipta Jain Itihas Part 02 Khand 02
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 152
________________ गुजरातमें जैनधर्म व श्वे० ग्रंथोत्पत्ति। [१३१ छहड़को कुमारपालने माफ करके उसे राजदरबार में एक उच्च पदपर नियत किया। इसी बीचमें चन्द्रावतीका सरदार विक्रमसिंह भी कुमारपालके विरुद्ध उठ खडा हुआ; किंतु उसे भी मुंहकी खानी पड़ी। उसकी जागीर छीनकर कुमारपालने अपने भतीजे यशोधवलको देदी । इसके बाद कुमारपालने मालबाके राजाको प्राणरहित किया और चित्तौरको जीतकर पंजाबमें अपना झंडा फहराया । चित्तौरकी जागीरको उसने अलिङ्कके सुपुर्द किया और वह स्वयं 'अवन्तीनाथ' कहलाया। सन् ११५० के लगभग कुमारपालने सपादलक्षपर हमला किया था, क्योंकि अरणोराजने उसकी बहिनका अपमान किया था। परिणामतः अरणोराजको कुमारपालकी सत्ता स्वीकार करना पड़ी थी। सन् ११५६ ई० के करीब कुमारपालने उत्तरीय कोङ्कणको जीतनेके लिये अपने सेनापति अम्बड़को भेजा था; किन्तु वह वहांके राजा मल्लिकअर्जुन सिल्हारसे हार गया। कुमारपाल इससे हताश नहीं हुआ और दूसरे हमलेमें अम्बड़ सिल्हार राजाको नष्ट करके कोङ्कणदेशको चालुक्य साम्राज्यमें मिलानेमें सफल हुआ। इस विजयकी खुशीमें कुमारपालने अम्बड़को 'राजपितामह के विरुदसे विभूषित किया। कुमारपालने उदयनको मंत्री और उसके पुत्र वाहड़को महा मात्य नियत किया था। गुजरातके एक युद्धमें जैन मंत्री बाहड़। यह जैन मंत्री घायल हो गया और सन् ११४९ में मर गया। उसकी इच्छानुसार उसके पुत्र बाहढ़ और अम्बड़ने शत्रुजय आदि तीर्थोपर जैन मंदिर आदि बनवाये थे। जब सुकुनिका विहारमें श्री मुनिसुव्रतनाथजीकी १-सडिजे० पृ० ८-९ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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