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१३४] संक्षिप्त जैन इतिहास। बड़ी मान्यता है । उन्होंने गुजरातका इतिहास भी लिखा था । तथापि उनके अन्य ग्रंथ धर्म, सिद्धान्त और साहित्य विषयोंपर बड़े मार्मिक हैं; जैसे योगशास्त्र, त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित्र, द्वाश्रय, शब्दानुशासन इत्यादि । हेमचन्द्रके अतिरिक्त कुमारपालके दरबार में रामचंद्र और उदयचंद्र नामक जैन पण्डित भी थे। रामचंद्रके काव्य ग्रन्थ प्रसिद्ध हैं । 'प्रबन्धशतक' ग्रन्थ उन्हींकी रचना है। किंतु राजकवि होनेका सौभाग्य कवि श्रीपालको ही प्राप्त था और सोलक नामक गवैया राजदरबारमें संगीत शास्त्रका पण्डित था । कुमारपालने इक्कीस शास्त्रभंडार अथवा पुस्तकालय स्थापित किये थे
और एक 'प्रतिलिपि-विभाग' खोला था; जिसके द्वारा प्राचीन ग्रंथोंकी नकल की जाती थी।३।। कहते हैं कि अपनी दिग्विजयमें कुमारपाल जब सिंधु सौवीर
देशको विजय कर रहे थे तब सिंधुके पश्चिम कुमारपालका गार्हस्थ्य पारस्थ पद्मपुरकी राजकन्या पद्मिनीके साथ व अंतिम जीवन। उनका विवाह हुआ था। किंतु अन्यत्र
उनकी महारानीका नाम भूपालदेवी लिखा मिलता है। भूपालदेवीकी कोखसे उन्हें एक कन्याका जन्म हुआ
था। कुमारपालके कोई पुत्र नहीं था। इस कन्याका नाम लिलू ' था और इसका पुत्र प्रतापमल कुमारपालका उत्तराधिकारी था। किंतु प्रतापमलके अतिरिक्त कुमारपालके भतीजे अजयपालका भी
१-हॉ० पृ० २८७ । २-सडिजै०, पृ० ११-१२। ३-हिवि०, भा० ५ पृ० ८३ । ४-सडिजै०, पृ० १२ व बंपालैस्मा०, पृ० २०९-२१०।
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