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संक्षिप्त जैन इतिहास |
चद्दरपर बिठलाकर प्राण रहित कर दिया था । और फिर सेनापति अम्बको उसने ललकारा था; किन्तु धर्मात्मा वीर अम्बड़ने इस धर्मद्रोही राजाकी सेवा करना स्वीकार नहीं की । उनने दृढ़ता और निर्भीकता से कहा कि इस जन्ममें मेरे देव श्री अरहंत भगवान के सिवा और कोई नहीं हैं । गुरु हेमचन्द्राचार्य रहे हैं और कुमारपाल स्वामी थे । इनके अतिरिक्त मैं किसीकी सेवा नहीं कर सक्ता | अजयपाल यह सुनते ही आग बबूला होगया । अबड़ और अजयपालका युद्ध हुआ और अंबड़ अपने धर्म और राजाके लिये उसमें वीर गतिको प्राप्त हुआ । अत्याचारी अजयपाल भी अधिक दिन जीवित न रहा । तीन वर्षके भीतर ही उसके एक दरवानने उसका कतल कर दिया । अजयपालके बाद मूलराज द्वितीय और भीम द्वितीय नामक राजा इस वंशमें और हुये थे और इनके साथ ही सन् १२४२ में इस वंशका अन्त होगया ।
भीमके बाद वालवंशने सन् १२१९ से १३०४ तक गुजरातपर राज्य किया था; जो सोलंकी वंशकी ही एक शाखा थी। इस वंशका पहला राजा अर्ण कुमारपालकी माताकी बहनका पुत्र था। इसने सन् १९७० से १२०० तक अनहिलवाड़ा से दक्षिण-पश्चिम १० मील वाघेला नामक ग्राममें राज्य किया था। इनका उत्तराधिकारी लवणप्रसाद था । जिस समय भीम द्वितीय उत्तर में अपनी सत्ता जमाने में व्यस्त था, उसी समय इसने धोलका और उसके आसपासके देशोंपर अधिकार जमा लिया था ।
वाघेलवंश और जैनधर्म !
१ - सडिजै०, पृ० १२-१३ ।
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