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संक्षिप्त जैन इतिहास । सन् १२३८ ई० में राजा वीरधवलकी मृत्यु होगई । उस घटनासे राज्य भरमें हाहाकार मच गया । अनेक प्रजाजन राजाके साथ ही अपनी जीवनलीला समाप्त करनेको तत्पर हो गये; किन्तु तेज़पालके प्रबन्धसे उनकी रक्षा हुई। वीर धवलके बाद राज्याधिकार पानेके लिये उसके वीरम् और वीसल नामक दोनों पुत्रोंमें झगड़ा हुआ । वस्तुपालने वीसलका पक्ष लिया और वही राजा हुआ । वीरम् जालोर अपने स्वसुरके पास भाग गया; जहां वह धोग्वेसे मारा गया था । वीसलदेवके राज्यकालमें ही दोनों भाइयोंकी अवनति हुई । कहते हैं कि वीसलके चाचा सिंहने एक जैनसाधुका अपमान किया था । वस्तुपाल इस धर्म विद्रोहको सहन न कर सके । उन्होंने सिंहकी उंगली कटवाली । वीसलदेवने वस्तुपालके इस दुस्साहसका पुरस्कार प्राणदण्ड दिया । किन्तु इस समय कविवर सोमेश्वरने बीचमें पड़ कर बस्नुपालकी रक्षा की थी। इस घटनाके कुछ दिनों ही बाद वस्तु. पालका स्वास्थ्य खराब हुआ और वह शत्रुजयकी यात्राको जाते हुए अकेवलिय ग्राममें स्वर्ग लोकके वासी हुये । तेजपालके पुत्रोंने इस स्थानपर एक भव्य मंदिर बनवा दिया था। यह सन् १२९१की बात है और इसके करीव १० वर्ष बाद तेजपाल भी अपने भाईके साथी बने ।' वस्तुपालको उस समय लोग राजनीति गुरु कौटिल्यसे कम नहीं मानते थे ।
उपरोक्त वर्णनसे यह स्पष्ट है कि गुजरातमें जैनधर्मकी प्रधानता प्राचीनकालसे रही है । तथापि सोलंकी राजाओंके राज्यकालमें
-सडिजै०, पृ० ५१-५९ । २-इंहिको०, भा० १ पृ० ७८६ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com