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संक्षिप्त जैन इतिहास |
प्रतिष्ठा हुई थी । तत्र कुमारपाल अपनी सभा मण्डली सहित पधारे थे । बाहड़ने शत्रुंजयके पास बाहड़पुर बसाया था और 'त्रिभुवनपाल नामक जैन मंदिर बनवाया । गिरनारपर सीड़ियां बनवाई थी और - सोमनाथ के मंदिर का जीर्णोद्धार किया था । पाटण, धंधुका आदि स्थानोंपर भी मंदिर बनवाये थे ।
कुमारपाल अपने प्रारंभिक जीवन में शैवधर्मानुयायी था और मांस-मद्य से उसे परहेज न था । वह पशु
कुमारपाल व जैनधर्म । ओंकी बलि देता था । किन्तु श्री हेमचंद्राचार्यके उपदेश से कुमारपालको जैनधर्म में रुचि हो गई और उसने सन् १९५९ में प्रगटतः जैनधर्मको ग्रहण कर लिया । कुमारपालने श्रावकके व्रतोंको धारण किया था और उसने धर्मप्रचार के लिये बहु प्रयास किये थे । कुमारपाल के जैनी होने पर भी उसके नागर ब्राह्मण पुरोहितोंने अपनी पुरोहिताई छोड़ी नहीं थी । जैनधर्मके संसर्गमें आकर कुमारपालकी बिल्कुल कायापलट होगई । वह एक बड़ा अहिंसक वीर हो गया । मद्य - मांसादि सब ही उससे छूट गये । उसने अहिंसा धर्मका खूब प्रचार किया । अपने राज्य में अभयदान सूचक ' अमारी घोष ' उसने कई वार कराये थे । जीवहत्या करनेवालेको प्राणदण्ड नियत किया था । वैसे उसने प्राणदण्ड उठा दिया था । बनारस के राजा जयचंद्र के दरबार में उसने उपदेशक भेजे थे कि वह अपने राज्य में हिंसाका निषेध कर दे । अपने पड़ोस के कमजोर राजाओंके अधिकारों को भी
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१ - बंप्राजेस्मा० पृ० २०९-२९० । २ - राइ० भा० १ पृ०
११४ | ३ - अहि० पृ० १९० ।
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