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संक्षिप्त जैन इतिहास |
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कैलम्बराजने इनको अर्धाश दे संरक्षण किया। फिर प्रतिष्ठानपुर, उज्जयनी आदि स्थानों में कुछ समय विताकर वह नागेन्द्रपत्तनमें अपने बहनोई कहदेव के पास रहे । कैलम्बराजकी सहायता से इन्होंने - राज्याधिकार प्राप्त किया था । राजपुरोहित देवश्रीने इनका राज्याभिषेक किया था । राजा होने पर कुमारपालने इन सबका समुचित आदर किया था । अलिङ्ग कुम्हार उनके राजदरबारका मुसाहिब नियत हुआ था । इस समय कुमारपालकी अवस्था पचास वर्ष के लगभग थी । इनका जन्म सन् १०९३ में दधिस्थली ( देवस्थली ) में हुआ था । यहीं श्वेतांबराचार्य हेमचन्द्रजीसे इनने सदुपदेश ग्रहण किया था । '
कुमारपाल राजा हो गये; परन्तु पुराने राजदरबारी इनके खिलाफ रहे । फलतः इनने उनका निराकण कुमारपालकी साम्राज्य किया । कण्हदेवने कुमारपालको राजा बना
वृद्धि ।
नेमें पूरी सहायता दी थी; इस कारण वह इनको कोई चीज़ ही नहीं समझता था । कुमारपालने उसे सावधान किया; परन्तु वह नहीं माना । आखिर उनने उसे गिरफ्तार कराके उसकी आंखें निकलवालीं । सिद्धराजने एक छहड़ नामक व्यक्तिको गोद लेकर उसे अपना पुत्र प्रगट किया था । कुमारपालके राजा होनेसे वह रुष्ट होकर सपादलक्ष पहुंचा और वहां अरणोराजने उसे आश्रय दिया था। और उसके लिये उसने कुमारपालसे लड़ाई भी लड़ी; किन्तु उसमें उसकी हार हुई | १ - सडिजे०, पृ० ५ हिवि०, भा० ५ पृ० ८३ व बंप्रा जैस्मा० पृ० २०८-२०९ ।
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