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हर्षवर्धन और चीनी यात्री हुएनत्सांग ।
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करती थी । बालविवाह नहीं होते थे।
हर्षकालीन सामाजिकस्थितिके विषय में श्रीकृष्णचन्द्र विद्यालङ्कारका कहना है कि " (वैदिक कालीन) भारत के
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सामाजिक स्थिति । सामाजिक जीवनकी सबसे मुख्य संस्था में वर्णव्यवस्था और आश्रम व्यवस्था है । हर्षकाल में इन दोनों संस्थाओंका अस्तित्व सुसंगठित रूपमें विद्यमान था; यद्यपि बौद्धों और जैनियोंके समानतावाद के प्रचार के कारण ये दोनों संस्थायें उतने आदर्श और व्यापक रूपमें नहीं रही थीं । हर्षकाल में बौद्धों और जैनियोंकी बहुत बड़ी श्रेणियां विद्यमान थीं । इनके अनुयायियोंकी संख्या बहुत अधिक थी । उत्तर भारतमें बौद्धों और दक्षिणी पश्चिमी भारतमें जैनियोंका काफी जोर था । बहुतसे प्रांतीय राजा भी इनके अनुयायी थे । इनके धार्मिक सिद्धांत और रीति-रिवाजका भी तत्कालीन समाजमें साधुओं, तपस्वियों, भिक्षुओं और यतियोंका एक बड़ा भारी समुदाय था, जो उस समयके समाजमें विशेष महत्व रखता था । बहुतसे साधु शहरों व गांवोंमें घूम कर लोगोंको उपदेश एवं शिक्षा दिया करते थे । यही हाल बौद्ध भिक्षुओं और जैन साधुओंका भी था । साधारणतः लोगोंके जीवनको नैतिक एवं धार्मिक बनानेमें इन साधुओं, यतियों और भिक्षुओंका बड़ा भारी भाग था । बौद्धोंके मठों, जैन यतियोंके उपाश्रयों और हिंदुओंके मंदिरों में शिक्षणालय होते थे । बौद्ध, जैन और ब्राह्मणधर्ममें पारस्परिक द्वेष नहीं था । बौद्ध और जैनधर्म के प्रचार के कारण लोगों में मांस भक्षणकी रुचि अधिक रूपसे नहीं रही थी । .
३- भाइ० पृ० १०४
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