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संक्षिप्त जैन इतिहास |
इन राजाओंका जैनी होना संभव है ।' चालुक्योंके बाद राष्ट्रकूट वंशका अधिकार गुजरातपर हुआ था ।
वल्लभीमें जब ध्रुवसेन प्रथम ( ५२६ - ५३५ ई० ) राज्य कर रहे थे, उस समय श्वेतांबर संप्रदायमें
श्वे० आगम ग्रंथोंकी देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण नामक एक प्रख्यात् उत्पत्ति । साधु थे । उन्होंने वल्लभी में श्वेतांबर जैन
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संघको एकत्र किया था और उसमें अंग ग्रंथोंका पुनः संशोधन करके उन्हें लिपिबद्ध करदिया । इस समयके बहुत पहले ही श्वेतांबर संप्रदायका जन्म होचुका था और उसने और भी कितनी ही प्राचीन बातोंमें रद्दोबदल किया था; जैसे साधुओंके भेषमें और मूर्तियोंके निर्माणमें आदि । इस अवस्थामें क्षमाश्रमणके लिये यह अवश्यक था कि वह श्वेतांबर जैन सिद्धांतको लिपिबद्ध कर देते । ब्राह्मण और बौद्ध तथापि स्वयं दिगम्बर जैनोंके ग्रंथ पहले ही लिपिबद्ध होचुके थे । श्वेतांबरों को भी यह ठीक नहीं जंचा कि उनके धर्मग्रंथ पुस्तकरूपमें लिपिबद्ध न हों। वह लिपिबद्ध कर लिये गये और उनमेंसे ' जिनचरित्र ' ( महावीर चरित्र ) का व्याख्यान आनंदपुरमें राजा ध्रुवसेनके समक्ष हुआ था । इस
१ - बंप्रा जैस्मा०, पृ० १९९ - १९६ । २ - ' कल्पसूत्र' ( Jacobi. ed. p. 67 ) लिखा- 'समणस्स भगवो महावीरस्स जावसव्व दुक्खप्यहिणस्स नववासस्स यायिम विक्य- तई दसमस्य वासस्सयस्सा अयं असी इमे सवच्चेरकाले गच्छह इति । ' - विनय विजयगणि इसकी टीका में लिखते हैं: - 'बलही पुरम्म नयरे देवइढिप मुहसवलसंघेहिं । पुव्वे आगम
लिहिऊ नव सय असी मनुवीराउ ॥ ३-उसू०, भूमिका पृ० १६ ।
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