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गुजरातमें जैनधर्म व श्वे० ग्रंथोत्पत्ति । |
बताया गया है, वह 'सुत्तनिपात' (३-१)में वर्णित म० बुद्ध और श्रेणिकके मिलापकी याद दिलाता है। अगाड़ी · उत्तराध्ययन ' में हरिकेश आदिकी कथा बौद्धोंकी जातक कथाओंके समान हैं।' 'उत्तराध्ययन सूत्र' एवं अन्य अंगग्रन्थ भी किसी एक आचार्यकी रचना नहीं है । बल्कि वह कई विद्वानोंकी रचना है, यह विदेशी विद्वानोंने सिद्ध किया है । अतएव यह हो सकता है कि क्षमाश्रमणने संग्रह करते हुये बौद्ध श्रोतसे भी साहाय्य ग्रहण कर लिया हो; जिससे उनकी रचनायें प्राचीन प्रगट हों। श्वेताम्बरोंने जो अपने साधुओंके भेषका वर्णन किया है, वह टीक एक बौद्ध भिक्षुके भेषके समान है। बौद्ध भिक्षुके लिये तीन 'चीवरों' (वस्त्रों को रख-. नेका विधान है, श्वेताम्बर ग्रंथ भी ‘स्थिवरकल्पी' जैन साधुके लिये तीन वस्त्रोतकको धारण करनेकी आज्ञा देते हैं । इनके नाम भी प्रायः दोनों संप्रदायोंमें एक समान हैं; जैसे अन्तरिज्जगं=पाली अन्तरावासकं, उत्तरिज्जगं=उत्तरासंगं, संघाडि-संघाटि । इसके अतिरिक्त दोनों संप्रदायोंके शास्त्रोंमें एक जैसे ही वाक्य और शब्द भी मिलते हैं। जैसे कि प्रो० पी० वी० वपट सा० ने प्रगट किये हैं।
(१) वेयरनीऽभिदुग्गां (श्वे० जैन-सूय० १-५-१-८) =अथ वेतरणिम् पनदुग्गं (बौद्धः सुनि० ६७४) ।
___ (२) विप्परिया समुवेन्ति (आसू० १-२-६-३)= विपरियासमेन्ति ।
१-उसू०, भूमिका पृ० ३८-४६ । २-उसू० भूमिका पृ०. ४०-५० व जैन सुत्रकी भूमिका । २-समामि वा० भा० २ पृ०॥ ९६-९७।
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